Dronagiri Village in Uttarakhand Still Holds a Grudge Against Lord Hanuman
Dronagiri village Hanuman : कुदरत के मोहक संसार में बसेे द्रोणागिरी गांव की अनूठी कहानी
Dronagiri village Hanuman : देहरादून, 1 अगस्त 2025 : द्रोणागिरी गांव हनुमान जी से नाराज है। युग बदल गए, त्रेता के बाद द्वापर और अब कलियुग। नाराजगी है कि बदस्तूर जारी है, क्यो ? यह भी बताते हैं, लेकिन पहले थोडा भूूूूमिका बना लें। चमोली जिले में चीन सीमा पर स्थित नीती घाटी में फैले कुदरत के मोहक संसार में बसता है द्रोणागिरी। एक ओर हिमालय की धवल चोटियां तो दूसरी ओर दूर तक फैली हरियाली, एक अनूठा सम्मोहन पैदा करती है। सामने सिर उठाए खडा द्रोणागिरी पर्वत इस गांव के लिए सिर्फ एक पहाड नहीं, बल्कि ईष्ट देवता हैं। यानी प्रकृति का संरक्षण उन्हें विरासत में मिला उपहार हैै, जो सदियों से उनके डीएनए में समाहित हो चुका है।
समुद्रतल से 12000 फीट की ऊंचाई पर बसे द्रोणागिरी गांव तक पहुंचना आसान नहीं है। ऋषिकेश से जोशीमठ तक 256 किमी की यात्रा के बाद जुम्मा तक 50 किमी की दूरी और तय करनी होती है। जुमा से साढे छह किलोमीटर लंबी कच्ची सडक पर चलने के बाद शुरू होती चार किलोमीटर की खडी चढाई, और लीजिए द्रोणागिरी गांव में आपका स्वागत है। पर्वत देवता के पुजारी और इसी गांव के रहने वाले दीवान सिंह रावत बताते हैं कि कभी गांव में 125 परिवार थे, लेकिन अब 55 से 60 ही रह गए हैं। हालांकि जो लोग दूसरे शहरों में हैं, उनका भी गांव आना-जाना लगा रहता है।
आखिर यह गांव हनुमान से क्यों नाराज है ? यह पूछने पर पुजारी दीवान सिंह के पुत्र उदय सिं रावत बताते हैं कि रामायण काल में लंका पर चढाई के वक्त युद्ध में मेघनाद के शक्ति प्रहार से लक्ष्मण मूर्छित हो गए। ऐसे में सुषेण वैद्य ने कहा कि लक्ष्मण का जीवन बचाने के लिए संजीवनी बूटी की जरूरत पडेंगी। इसी बूटी को लेने हनुमान द्रोणागिरी पर्वत पहुंचे। गांव के लोग इसलिए नाराज हैं कि हनुमान संजीवनी के बजाय द्रोणागिरी पर्वत का एक हिस्सा उखाड़कर ही लंका ले गए, जबकि, ये पर्वत उनके ईष्ट देव हैं।
लोगों का कहना है कि हनुमान जब संजीवनी लेने आए, तब गांव की एक वृद्धा ने उन्हें पर्वत का वह हिस्सा दिखाया था, जहां संजीवनी बूटी उगती थी। यह भी बताया कि बूटी तक कैसे पहुंच सकते हैं। बावजूद इसके वह पर्वत का एक हिस्सा ले गए। हालांकि इन लोगों की राम से कोई नाराजगी नहीं है और वे श्रद्धा से राम की भक्ति करते हैं। रामलीला का आयोजन यहां सिर्फ तीन दिन होता है। श्रीराम जन्म व सीता स्वयंवर के बाद सीधे राम का राज्याभिषेक कर दिया जाता है। इसमें हनुमान लीला का मंचन नहीं किया जाता। लोगों की धारणा है कि गांव में संपूर्ण रामलीला का मंचन करने से कुछ-न-कुछ अशुभ अवश्य होता है। मान्यता है कि लंका विजय के बाद श्रीराम स्वयं पर्वत देवता को मनाने के लिए द्रोणागिरी गांव आए थे। गांव में एक छोटे से पहाड़ पर जहां उनके चरण पड़े, उसे ‘रामपातल’ नाम से राम तीर्थ के रूप में पूजा जाता है। इस जंगल में भोजपत्र समेत दुर्लभ जड़ी-बूटी पाई जाती हैं। गांव के आसपास जड़ी-बूटियों का भंडार है।
माना जाता है कि श्रीलंका के दक्षिणी तट गाले में मौजूद ‘श्रीपद’ नाम की जगह पर स्थित पहाड़ ही द्रोणागिरी पर्वत का वह हिस्सा है, जिसे संजीवनी की खातिर हनुमान हिमालय से उठाकर ले गए थे। इस पहाड़ को ‘एडम्स पीक’ भी कहते हैं, जबकि श्रीलंकाई लोग इसे ‘रहुमशाला कांडा’ कहते हैं। यह पहाड़ रतनपुर जिले में स्थित है।