Kunja Bahadurpur Revolt 1824 : Sunhera Village & The 1824 Kunja Bahadurpur Revolt: India’s Unsung First Freedom Struggle
Kunja Bahadurpur Revolt 1824 : रुड़की, 13 अगस्त 2025 : रुड़की से सटा सुनहरा अब नगर का वार्ड बन गया हैै, लेकिन तहसील से चार किमी दूर यह इलाका कुछ वर्ष पहले तक गांव ही था। यहीं खडा है एक बूढा बरगद। उम्र कितनी होगी, कोई नहीं जानता। गांव के बडे-बूढों ने भी इसे ऐसेे ही देखा। लेकिन आज भी सीना ताने गर्व से खडे इस ‘बुजुर्ग’ ने क्रांति की वो दास्तां देखी है, जिसेे वक्त की गर्दो-गुबार ने ऐसा ढंका कि 200 साल बाद भी इतिहास की किताबों में जगह न मिल सकी। हालांकि बाद में कुछ प्रयास जरूर हुए, मगर वो दर्जा आज भी नहीं मिल पाया जिसका वोे हकदार है।
दरअसल, आजादी के ‘पहले गदर’ की यह गाथा दर्ज है सहारनपुर गैजेटियर में । गैजेटियर तैयार किया था एक ब्रिटिश अफसर एचआर नेविल ने, जो इंडियन सिविल सर्विस (आईसीएस) के अधिकारी थे। उन्होंने ‘ डिस्ट्रिक्ट गैजेटियर आफ यूनाइटेड प्रोविंसेज ऑफ आगरा एंड अवध ‘ के लिए गैजेटियर की श्रंखला तैयार की थी। सहारनपुर गैजेटियर इसी श्रंखला का हिस्सा था। आइए जानते हैं क्रांति की उस कहानी को, जो 1857 के स्वतंत्रता समर से करीब तीन दशक पहले जन्मी थी।
रुडकी से 15 किमी दूर भगवानपुर तहसील का एक गांव है कुंजा बहादुरपुर। इस गदर की जडे इसी गांव में हैं। वर्ष 1822 का दौर। हालात सूखे के थे। फसल चौपट थी और अंग्रेज अफसर जबरन लगान वसूली में लगे थे। इससे किसानों में आक्रोश पनपने लगा। किसानों ने लंढौरा रियासत के राजा विजय सिंह से गुहार लगाई तो उन्होंने कंपनी सरकार से लगान माफ करने का अनुरोध किया। अंग्रेजों ने अनुरोध ठुकरा दिया। इससे राजा विजय सिंह के भीतर क्रोध की चिंगारी सुलगने लगी। उन्होंने अपने सेनापति कल्याण सिंह और भूरा की सहायता से किसानों के साथ मिलकर विद्रोह का बिगुल बजा दिया। बताते हैं कि उन्होंने कंपनी सरकार का खजाना भी लूटा था। दो वर्ष तक चले युद्ध के बाद 1824 में अंग्रेजाें ने क्रूरता पूर्वक इस विद्रोह का दमन कर दिया। युद्ध मे तीन अक्टूबर को राजा विजय सिंह और उनके सेनापति कल्याण सिंह शहीद हो गए और पकडे गए 152 क्रांतिकारियों को सुनहरा गांव में बरगद के पेड से लटका कर फांसी दे दी गई। इस वृक्ष पर जंजीरों और कुंडों के निशान उस दौर की निशानी के तौर पर आज भी देखे जा सकते हैं। बताया जाता है कि 1947 तक जंजीरे और कुंडे पेड पर लटके रहते थे। आज भी गांव के लोग तीन अक्टूबर को शहीद दिवस मनाते हैं। उप्र में तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने पहली बार यहां आए और शहीदों को श्रद्धा सुमन अर्पित किए। उत्तराखंड बनने के बाद तब के उप राष्ट्रपति एम वैंकया नायडू भी यहां आए थे।