Uttarakhand Congress Eyes 2027 Revival with Kumari Shailja’s Visit
देहरादून, 28 अगस्त 2025 : उत्तराखंड में पिछले कई सालों से सत्ता से दूर और चुनाव दर चुनाव हार झेल रही कांग्रेस को आखिरकार उसके राष्ट्रीय नेतृत्व की याद आई है। लगभग डेढ़ साल के अंतराल के बाद उत्तराखंड कांग्रेस प्रभारी कुमारी शैलजा के देहरादून दौरे ने कार्यकर्ताओं में एक नई उम्मीद जगाई है। यह दौरा ऐसे समय में हो रहा है, जब पिछले एक पखवाड़े से प्रदेश कांग्रेस अचानक भाजपा सरकार पर हमलावर हुई है, जिससे यह संकेत मिल रहे हैं कि 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी ने कमर कस ली है।
उत्तराखंड में कांग्रेस की हार का सिलसिला 2012 के बाद से ही जारी है। 2014 के लोकसभा चुनाव से लेकर 2024 के लोकसभा चुनाव तक, कांग्रेस को लगातार हार का मुंह देखना पड़ा। 2017 में तो पार्टी मात्र 11 सीटों पर सिमट गई थी, हालांकि 2022 में सीटें बढ़कर 19 हुईं, पर सरकार बनाने के लिए यह काफी नहीं था। इन लगातार हारों के पीछे सबसे बड़ा कारण पार्टी के अंदर की आपसी गुटबाजी और शीर्ष नेताओं की महत्वाकांक्षा को माना जाता है। इसी आपसी खींचतान के कारण पार्टी आलाकमान ने प्रदेश इकाई को उसके हाल पर छोड़ दिया था।
अब कुमारी शैलजा का यह दौरा 2027 के विधानसभा चुनाव की तैयारियों की शुरुआत माना जा रहा है। माना जा रहा है कि पार्टी आलाकमान विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश के किसी बड़े नेता को कमान सौंप सकता है। पिछले एक महीने में जिस तरह से कांग्रेस नेता सक्रिय हुए हैं और सरकार पर हमलावर हुए हैं, यह भी इसी रणनीति का हिस्सा लगता है। फायरब्रांड नेता हरक सिंह रावत इस आक्रामक रुख में सबसे आगे हैं। उनके बयान न केवल कार्यकर्ताओं में जोश भर रहे हैं, बल्कि भाजपा को भी पलटवार करने पर मजबूर कर रहे हैं।
शैलजा ने देहरादून दौरे के दौरान वरिष्ठ नेताओं, विधायकों और पदाधिकारियों के साथ बैठक की। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी के निर्देशों के अनुसार, पार्टी जिला स्तर पर युवाओं को नेतृत्व देने की योजना बना रही है। उन्होंने यह भी बताया कि सितंबर में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) और प्रदेश कांग्रेस कमेटी (पीसीसी) के पर्यवेक्षकों की रिपोर्ट के आधार पर प्रदेश और जिला स्तर पर संगठनात्मक बदलाव किए जाएंगे। यह कदम पार्टी के पुनरुद्धार और आने वाले चुनावों के लिए मजबूत आधार तैयार करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। अब देखना यह है कि क्या यह नई रणनीति कांग्रेस को उत्तराखंड में फिर से खड़ा कर पाएगी या यह भी सिर्फ एक और कोशिश बनकर रह जाएगी।