देहरादून : दून के नामी बिल्डर सतेंद्र साहनी 1500 करोड़ रुपए के जिन दो भारीभरकम प्रोजेक्ट का कमान संभाल रहे थे, उनमें उनकी व्यक्तिगत हिस्सेदारी महज 03 प्रतिशत ही थी। क्योंकि, उन्होंने अपने और अपने मूल पार्टनर संजय गर्ग की 40 प्रतिशत हिस्सेदारी का 34 प्रतिशत बोझ घटाने के लिए गुप्ता बंधु की एंट्री करा दी थी। तब उन्हें इस बात का अंदेशा नहीं था कि गुप्ता बंधु की एंट्री उनके जीवन में इतनी उथल-पुथल मचा देगी कि, उनकी ही आत्महत्या का कारण बन जाएगी। सतेंद्र साहनी बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन के क्षेत्र का प्रतिष्ठित नाम था, लिहाजा जब उन्होंने अपने पार्टनर संजय गर्ग के साथ सहस्रधारा रोड और राजपुर रोड पर अम्मा कैफे के बगल में 02 बड़े आवासीय प्रोजेक्ट पर हाथ आजमाने की सोची तो उन्हें जमीन देने वाले पार्टनर खोजने में खास परेशानी नहीं हुई।
जिन व्यक्तियों की यह जमीन थी, उन्हें साहनी स्ट्रक्चर और साहनी इंफ्रास्ट्रक्चर एलएलपी कंपनियों में 60 प्रतिशत हिस्सेदारी में काम करने में कोई दिक्कत नहीं हुई। लेकिन, साहनी के लिए इन प्रोजेक्ट पर अकेले आगे बढ़ना आसान नहीं था। क्योंकि, करीब 1500 करोड़ रुपए का 40 प्रतिशत भी 600 करोड़ रुपए था। साहनी बड़ा दांव खेल चुके थे, लिहाजा यहां से पीछे लौटने का कोई रास्ता भी नहीं था। पीछे लौटना साहनी जैसे बिल्डर के नाम के अनुरूप भी नहीं था। ऐसे विकट समय में उन्होंने बलजीत सिंह बत्रा (बलजीत सोनी) से संपर्क साधा। उहोंने साहनी की मुलाकात गुप्ता बंधु में से एक अजय गुप्ता के बहनोई अनिल गुप्ता से करवाई। अनिल गुप्ता को साइलेंट पार्टनर के रूप में 40 प्रतिशत के 85 प्रतिशत वित्त पोषण के लिए एंट्री दी गई। शर्त रखी गई कि वह सिर्फ अपने मुनाफे से मतलब रखेंगे और प्रोजेक्ट में हस्तक्षेप नहीं करेंगे। इस तरह सतेंद्र साहनी ने बड़ा दांव खेलकर अपने और पार्टनर संजय गर्ग की हिस्सेदारी को 06 प्रतिशत पर सीमित कर दिया।
इस ज्वाइंट डेवलपमेंट एग्रीमेंट में सतेंद्र साहनी उर्फ बाबा साहनी की हिस्सेदारी व्यक्तिगत रूप से और भी कम सिर्फ 03 प्रतिशत रह गई थी। हालांकि, इतनी कम हिस्सेदारी के बाद भी वह 1500 करोड़ रुपए की परियोजनाओं के विकास की कमान संभाल रहे थे। दूसरी तरफ प्रोजेक्ट की जमीनों के मालिक इस साइलेंट पार्टनरशिप से अनजान थे। बेशक अनिल गुप्ता के साथ सतेंद्र साहनी की पार्टनरशिप साइलेंट थी, लेकिन वित्त पोषण के लिहाज से 34 प्रतिशत की हिस्सेदारी को देखते हुए अजय गुप्ता बीच में आ गए और वह नियमित रूप से परियोजना की साइटों पर दस्तक देने लगे। इस काम के लिए अजय गुप्ता ने अपने प्रतिनिधि के रूप में आदित्य कपूर नाम के व्यक्ति को भी नियुक्त कर दिया। पुलिस के मुताबिक यह बात जब जमीनों के मालिकान को पता लगी तो उन्होंने गुप्ता बंधु के दक्षिण अफ्रीका के कारनामे और आपराधिक इतिहास को देखते हुए कदम पीछे खींच लिए।
ऐसे में इतना बड़ा दांव खेल चुके बिल्डर साहनी को उस 60 प्रतिशत हिस्सेदारी की कमी को पूरा करना असंभव लगने लगा। दूसरी तरफ गुप्ता बंधु को भी बाहर कर पाना उनके लिए आसान नहीं था। क्योंकि, वह तब तक प्रोजेक्ट में अच्छी खासी रकम (चर्चाओं के मुताबिक 40 करोड़ रुपए और कोर्ट में दिए बयान के मुताबिक 19 करोड़ रुपए) लगा चुके थे। बताया जा रहा है कि इस राशि को लेकर गुप्ता बंधु का दबाव सतेंद्र साहनी पर बढ़ता जा रहा था। इन विकट परिस्थितियों में बिल्डर साहनी के सामने आगे कुआं और पीछे खाई जैसी स्थिति खड़ी हो गई थी। लेकिन, इस कहानी और ज्वाइंट डेवलपमेंट एग्रीमेंट का अंत इतना दुखद होगा, यह किसी ने नहीं सोचा था। यह साहनी का इतना बड़ा दांव था, जो सफल हो जाता तो रियल एस्टेट सेक्टर में सफलता के नए आसमान पर पहुंच जाते, लेकिन होनी को तो कुछ और ही मंजूर था।