देहरादून : चारधाम आलवेदर रोड परियोजना की निर्माणाधीन सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 श्रमिकों का हौसला भी पहाड़ जैसा मजबूत था। बाहर शासन-प्रशासन से लेकर केंद्र और राज्य सरकार की एजेंसियां श्रमिकों को बचाने के लिए जान लड़ा रही थीं तो भीतर श्रमिकों ने उम्मीद का दीया जलाए रखा। मुश्किल वक्त में धैर्य रखा और एक-दूसरे का मनोबल बढ़ाते रहे।
सुरंग में फंसे श्रमिकों ने बाहर हो रही कवायद, घर परिवार और यारी-दोस्ती के किस्सों के साथ मोबाइल गेम और कहानियां सुनाकर भीतर के खौफनाक माहौल को भी हल्का-फुल्का रखा। पाइप के जरिये जब किसी अधिकारी और स्वजन से बात होती तो एक ही शब्द सुनाई देता हौसला रखिए…सब ठीक होगा। पाइप के दूसरे छोर से श्रमिक भी कहते “हम ठीक हैं, चिंता मत करना”। इन बातों ने श्रमिकों का मनोबल बढ़ाया। बस फिर क्या था
जिंदगी….जिंदा दिली का नाम है। अवसाद से बचने के लिए श्रमिकों ने सुरंग के भीतर नियमित योगाभ्यास किया। इन भयावह दिनों और करीब 394 घंटों व 17 दिन के बाद आखिरकार श्रमिकों ने खुली हवा में सांस ली।
सुरंग में फंसे और नवयुग कंपनी के फोरमैन गबर सिंह ने श्रमिकों को निरंतर इसके लिए प्रेरित किया। बीते 12 नवंबर को उत्तरकाशी में निर्माणाधीन सिलक्यारा सुरंग में 41 श्रमिक फंस गए थे। इन श्रमिकों को निकालने के लिए लगातार 17 दिन तक बचाव अभियान चलाया गया। देश-विदेश में हर कोई श्रमिकों के सही सलामत बाहर आने की दुआ कर रहा था।
एंडोस्कोपिक फ्लेक्सी कैमरे के जरिये सुरंग में फंसे श्रमिकों की 21 नवंबर को पहली तस्वीर सामने आने के बाद यह तो साफ हो गया था कि सुरंग में फंसे सभी श्रमिक सुरक्षित हैं। लेकिन, जब तक इन श्रमिकों को बाहर नहीं निकाला जाता, तब तक इनका मनोबल और हौसला बनाए रखना किसी चुनौती से कम नहीं था। इसके लिए नियमित छह इंच के पाइप के जरिये इन श्रमिकों से बातचीत की गई।
इस महत्वपूर्ण कार्य में सुरंग में फंसे कोटद्वार (उत्तराखंड) निवासी गबर सिंह ने अहम भूमिका निभाई। बकौल गबर सिंह श्रमिक अवसाद में न जाएं इसके लिए वह सभी को नियमित सुरंग में टहलने के लिए प्रेरित करते थे। साथ ही, इन्हें योगाभ्यास भी कराया जाता था। सभी श्रमिक आपस में बात करते रहें, कोई अकेला न रहे, इसके लिए सभी एक-दूसरे को किस्से और कहानियां सुनाते थे। श्रमिकों ने विपरीत परिस्थितियों में भी एक-दूसरे का हौसला नहीं टूटने दिया। छह इंच के पाइप के जरिये श्रमिकों के लिए मोबाइल और लूडो भेजा गया, संचार की व्यवस्था की गई। ताकि सभी श्रमिक मोबाइल में गेम खेलकर और गाने व फिल्में देखकर अपना समय व्यतीत करें।