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Himalaya Ki Awaj > Blog > उत्तराखंड > सरवाइकल कैंसर से जागरूकता ही बचाव : डाॅ. सुजाता संजय
उत्तराखंड

सरवाइकल कैंसर से जागरूकता ही बचाव : डाॅ. सुजाता संजय

Web Editor
Last updated: 2024/02/03 at 2:09 PM
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7 Min Read
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देहरादून: हर साल 4 फरवरी को विश्व कैंसर दिवस मनाया जाता है। इसके पीछे उद्देश्य यह है कि आम लोगों को कैंसर के खतरों के बारे में जागरूक और इसके लक्षणों से लेकर जानकारी दी जा सके इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर संजय ऑर्थोपीडिक, स्पाइन एवं मैटरनिटी सेंन्टर, जाखन देहरादून की #100 वीमेन्स अचीवर्स ऑफ इंडिया से सम्मानित डाॅ. सुजाता संजय स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ, ने सरवाइकल कैंसर के ऊपर एक बेबीनार द्वारा जन जागरूकता व्याख्यान दिया जिसमें 80 से अधिक महिलाओं एवं किशोरियों ने भाग लिया। संजय मैटरनिटी सेंटर की स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डाॅ. सुजाता संजय ने किशोरियों को सरवाइकल कैंसर के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि, शरीर के किसी भी भाग की कोशिका का असामान्य विकास कैंसर है। शरीर के किसी भी भाग में लम्बे समय तक सूजन, जख्म और रसौली का होना कैंसर हो सकता है। भारत में 2023 की एक रिपोर्ट के अनुसार सरवाइकल कैंसर के 3.4 लाख से अधिक ममहिलाऐं प्रभावित हैं। ऐसा अनुमान है कि प्रतिवर्ष 9 से 27 प्रतिशत भारतीय महिलाऐं सरवाईकल कैंसर से पीड़ित होती है। सरवाइकल कैंसर के सर्वाधिक मामले 15-44 आयु वर्ग की स्त्रियों में देखने को मिल रहा है।

डाॅ. सुजाता संजय ने बताया कि सरवाइकल कैंसर ह्रयूमन पेपिलोमा वाइरस (एच.पी.वी.) से सरविक्स में संक्रमण के कारण होता है। यह वाइरस अधिकतर यौन सक्रिय महिलाओं को उनके जीवन के प्रजनन चरण के दौरान संक्रमित करता है। अच्छी जनंनाग स्वच्छता तथा शरीर की आत्म रक्षा प्रणाली के कारण अधिकांश महिलाओं में स्पष्ट लक्षण उभर कर नहीं आते तथा शरीर दबा रहता है। यद्यपि 3-10 प्रतिशत महिलाएं जो बार-बार लगातार एच.पी.वी. संक्रमण से प्रभावित रहती है वह अंत में सरवाइकल कैंसर का शिकार होती है। प्रारम्भिक स्तर ;कैंसर पूर्वद्ध बहुत से कैंसरों के कोई स्पष्ट लक्षण नहीं होते। अतः बहुत सी महिलाएं सोचती है कि वह सुरक्षित है। परन्तु, सावाइकल कैंसर भारतीय महिलाओं को होने वाले कैंसरों में सर्वाधिक पाया जाने वाला रूप है। सवाइकल कैंसर के प्रारम्भिक स्तर से पीडित सभी महिलाएं पूर्णतः स्वस्थ हो सकती हैं परंतु यदि कैंसर, कोशिकाओं व अन्य ऊतकों में भी फैल चुका है तो इलाज कठिन हो जाता है। अतः शीध्र तथा नियमित स्क्रिींनिंग बहुत महत्तवपूर्ण है।
डाॅ. संजाता संजय ने सरवाइकल कैंसर के होने के कारण बताये जैसेः-छोटी उम्र में शादी होना या संभोग करना, छोटी उम्र में गर्भधारण या अधिक बच्चे पैदा करना, पति या पत्नी का एक-दूसरे के अतिरिक्त और लोगों से भी यौन सम्बन्ध होना, धूम्रपान या तम्बाकू खाना, बच्चेदानी के मुंह पर मस्से होना, स्वास्थ्य शिक्षा और सफाई का अभाव, आर्थिक स्थिति का निम्न स्तर।

डाॅ. सुजाता संजय ने सरवाइकल कैंसर होने के लक्षण बताये जैसेः-प्रारम्भिक स्थिति में महिला को किसी प्रकार की तकलीफ नहीं होती और न ही कोई लक्षण दिखाई देते है। जैसे-जैसे रोग बढ़ता है निम्नांकित शिकायतें हो सकती है-जैसेः-सफेद पानी या खून मिला पानी लम्बे समय तक आना, संभोग के बाद खून आना, मासिक-धर्म की अमियमिता, जैसे-रूककर आना तथा बीच-बीच में खून के धब्बे दिखाई देना, मस्सा या तिल में कोई परिवर्तन, खांसी या लगातार रूखापन, मल विसर्जन की सामान्य प्रक्रिया में जल्दी-जल्दी परिवर्तन एवं मुँह के अन्दर कोई सफेद दाग आदि।

डाॅ. सुजाता संजय ने बताया कि बच्चेदानी के मुॅह के कैंसर का प्रारम्भिक अवस्था में निदान एवं उपचार संभव हैः
1. पैप टैस्टः- डाॅ. सुजाता संजय ने बताया कि इस जाॅच में बच्चेदानी के मुख से लिए गए द्रव की जाॅच के द्वारा कैंसर की शुरूवात होने से काफी समय (लगभग 5-7 वर्ष) पहले ही पता लगाया जा सकता है। यह सुविधा सभी बड़े अस्पतालों में उपलब्ध है। सरवाइकल कैंसर की जाॅच में पैप स्मियर टैस्ट सर्वाधिक प्रचलित तरीका है परंतु नमूना संग्रहण हेतु प्रशिक्षित मेडिकल स्टाफ तथा आगे के विश्लेषण हेतु प्रयोगशाला सुविधाओं की आवश्यकता होती है। आप एक साधारण स्क्रिीनिंग तकनीक जिसे वी.आई.ए. (विजुअल इन्स्पैक्शन विद एसेटिक एसिडद्) कहते हैं, के द्वारा तत्काल परिणाम जानने हेतु यह जांच करा सकती है। इसके कारक वायरस की लगातार उपस्थिति का पता लगाना, एच.पी.वी.-डी.एन.ए. टैस्ट के द्वारा भी संभव है, जिसके द्वारा तक परिवर्तन प्रारम्भ में ही जांचें जा सकते हैं। सभी यौन सक्रिय महिलाओं तथा रजोनिवृत्ति के पश्चात प्रौढ. महिलाओं को भी प्रतिवर्ष अपनी जाँच करानी चाहिए।
2. एच.पी.वी. टीकाकरणः- इसके अलावा आप अपने परिवार की सभी किशोर युवतियों तथा अविवाहित युवतियों अर्थात् यौन सक्रिय होने से पूर्व महिलाओं का टीकाकरण करवाकर सरवाइकल कैंसर से बचाव कर सकती है। परंतु याद रखें कि टीकाकरण के पश्चात् भी नियमित रूप से वी.आई.ए. स्क्रीनिंग या पैप स्मियर टैस्ट तथा एच.पी.वी.-डी.एन.ए. टैस्ट के द्वारा तीन वर्ष के मध्य एक जाँच कराने की आवश्यकता होती है। 25 वर्ष तक की महिलाओं के लिए यह टीका सर्वाधिक प्रभावशाली है क्योंकि जितनी जल्दी तथा शादी से पूर्व यह टीका लगाया जाए तो बचाव बेहतर होता है।
3. काॅल्पोस्कोप मशीन द्वारा जननांगों की जांचः- इन दोनों ही जाँचों में केवल दो-तीन मिनट का समय लगता है। इन जाँचों के लिए न कोइ चीरफाड होती है, बेहोश नहीं किया जाता, सुई नहीं लगाई जाती और न ही भर्ती होने की आवश्यकता होती है।

डाॅ. सुजाता संजय ने बताया कि पैंतीस वर्ष से अधिक उम्र की महिला तथा जिस महिला की शादी को लगभग 5-6 वर्ष हो गए हों, प्रतिवर्ष अपनी जांच करवानी चाहिए। इस जांच के द्वारा कोशिकाओं का असामान्य व्यवहार कैंसर होने के काफी समय पहले ही ज्ञात किया जा सकता है। इस तरह के कार्यक्रमों का उद्देश्य समाज को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करना है जिससे स्वस्थ समाज का निर्माण हो सके।

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