भारत और ब्रिटेन के बीच हुए मुक्त व्यापार समझौते से बढेगा उत्तराखंडी बासमती का निर्यात
आज से करीब 180 साल पहले अफगानिस्तान से देहरादून आई थी बासमती
देहरादून : अब दून की बासमती विलायत में भी महकेगी। भारत और ब्रिटेन के बीच हुए मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) का लाभ उत्तराखंड के किसानों को भी मिलेगा। समझौते से इस नायाब चावल का निर्यात बढने की उम्मीदों को पंख लगे हैं और जाहिर है यदि आमदनी बढी तो किसान उत्पादन बढाने में भी रुचि दिखाएंंगे। वर्तमान में तो हालत यह है कि देहरादूनी बासमती का रकबा घटता जा रहा है। दून में वर्ष 2018 में 410.18 हेक्टेयर भूमि में इसकी खेती की जा रही थी, जो वर्ष 2022 में घटकर 157.83 हेक्टेयर रह गई।
आइए, जब बात चली है तो इतिहास में देहरादून की बासमती के सफर को भी टटोल लें। उत्तराखंड में यूं तो बासमती की खेती हरिद्वार, ऊधमसिंहनगर और नैनीताल जिलेे में भी होती है, लेकिन देहरादून की माटी की बात ही कुछ और है। खास बात यह है कि बासमती देहरादून की मिटटी में नहीं जन्मी। आज से करीब 180 साल पहले यह अफगानिस्तान से हजारों मील लंबा सफर कर यहां पहुंची। इसे लाने वाले थे अफगानिस्तान के तत्कालीन शासक दोस्त मोहम्मद खान। वह निर्वासित जीवन बिताने यहां आए तो बासमती का बीज भी साथ ले आए। भले ही यह बीज विदेशी था, मगर इसे यहां की माटी ऐसी रास आई कि इसकी गुणवत्ता पहले से कई गुना बेेहतर हो गई। खूशबू ऐसी कि पूरा गांव महक उठता। अपनी मिठास, महक और स्वाद के कारण यह शौकीनों की जुबान की शान बन गई। बताते है किसी जमाने में बासमती का रकबा 2200 एकड़ था।
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आदरणीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के दूरदर्शी नेतृत्व में भारत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। भारत और ब्रिटेन के बीच फ्री ट्रेड समझौता होने से प्रदेश के बासमती चावल को भी अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में नई पहचान और बेहतर कीमत मिलेगी इससे राज्य के किसानों की आय में भी इज़ाफा होगा। यह पहल प्रधानमंत्री जी के ‘वोकल फॉर लोकल’ के मंत्र को साकार करते हुए स्थानीय उत्पादों को वैश्विक मंच तक पहुंचाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
पुष्कर सिंह धामी, मुख्यमंत्री, उत्तराखंड