Dharali disaster cause : Dharali Disaster: Scientists Baffled by Cause, Cloudburst or Glacier Lake?
देहरादून, 12 अगस्त 2025 : कुदरत के क्रोध का अक्स बन चुके धराली में यह सच आज भी अंधेरे में डूबा है कि उस दोपहर को जो कुछ हुआ, वह कैसे हुआ। वहां बादल फटा या झील, ग्लेश्यिर या कुछ और…….। इन सवालों से जूझ रहे वैज्ञानिक घटना का अध्ययन कर कारणों की जांच-पडताल में जुटे हैं। बावजूद इसके फिलहाल यह एक ऐसा रहस्य बना हुआ है कि कई बार वैज्ञानिकों के तर्क और अनुमान भी विरोधाभासी प्रतीत होने लगते हैं।
मसलन, पांच अगस्त को शुरुआती दौर में कहा गया कि बादल फटने के कारण तबाही का यह मंजर सामने आया, लेकिन शाम होते-होते जब वरिष्ठ वैज्ञानिकों को उस क्षेत्र में वर्षा के आंकडे पता चले तो यह तर्क धराशायी हो गया। वैज्ञानिकों का मानना था कि हिमालयी क्षेत्र में अत्यधिक ऊंचाई वाले इलाकों (9000 फीट से ऊपर) में बादल फटने की संभावना बेहद कम हो जाती है। दूसरा, आपदा वाले इलाके में बारिश भी महज 10 से 12 एमएम के आसपास ही दर्ज की गई। विज्ञान की परिभाषा में जब एक सीमित दायरे में एक घंटे में 100 मिमी बारिश दर्ज की जाए तो उस परिस्थिति को बादल फटना माना जाता है। ऐसे में वैज्ञानिकों की आशंका ग्लेश्यिर लेक को लेकर मजबूत होने लगी थी। लेकिन यह आशंका भी तब निर्मूल साबित हुई, जब नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर से सेटेलाइट चित्र जारी किए गए।गए। लगभग एक साल पुराने इन चित्रों में कोई झील नजर नहीं आ रही है। वैज्ञानिकों के अनुसार एक साल के भीतर ऐसी झील बनने की संभावना नहीं है, जो इतनी बडी तबाही का बायस बन सके।
दरअसल, हर्षिल घाटी के भूगोल पर गौर करें तो पता चलता है कि घाटी के ठीक ऊपर पहाडों पर तीन रिज (दाेे पहाडों के बीच में एक ढलान, जो नाली की आकृति लिए होता है ) हैं। ये रिज ग्लेश्यिरों में होने वाले भ्रंश से अस्त्त्वि में आते हैं। ये तीनों रिज एक ही पर्वत श्रंखला का भाग हैं। हर्षिल घाटी में तबाही का कारण बनी तीन नदियां (खीर गंगा, तेल गंगा और भेला नदी ) इन्हीं रिज से होकर नीचे की ओर आती हैं। इस बार फिर इन तीनों नदियों में सैलाब आया। इनमें से खीर गंगा श्रीकंठ पर्वत से निकलती है और इसी नदी ने धराली को मटियामेट कर दिया। इसी तरह मैनक और हिमाल ग्लेश्यिर से निकलने वाली तेल गंगा ने हर्षिल में कहर बरपाया, जबकि अवाना ग्लेश्यिर से उत्पन्न भेला नदी के आसपास आबादी क्षेत्र नहीं था तो यहां जान माल का नुकसान नहीं हुआ।
इससे पहले वर्ष 2022 में भी इन्हीं रिज से निकल रही नदियों में बाढ आई थी, लेकिन तब इतना नुकसान नहीं हुआ था। वैज्ञानिक अब अनुमान लगा रहे हैं कि बारिश को लेकर मौसम विभाग का डाटा हर्षिल क्षेत्र का जरूर है, मगर जिस स्थान से सुनामी जैसी लहरें धराली की ओर फिसलीं, उस स्थान पर किसी तरह का रेन गेज नहीं है। ऐसे में इस अनुमान पर भी संशय ही होता है कि उस इलाके में बादल नहीं फटा था। खैर, देर-सबेर विशेषज्ञ तो इस सवाल का जवाब तलाश ही लेंगे, लेकिन हमें तो इस सवाल का जवाब खोजना होगा कि भविष्य में ऐसी तबाही से बचने के लिए क्या उपाए किए जाएं