गुरु: उजियारे का आधार
सुबह की पहली किरण हो तुम,
जो जीवन में उजाला भर दे।
तुम्हीं से हर कदम संभलता है,
तुम्हीं से मन में विश्वास भरता है।
कक्षा के छोटे से कोने में,
तुम एक जगत रच देते हो।
स्याही, चॉक और शब्दों से,
जीवन का सत्य लिख देते हो।
तुम्हारी आँखों में दया है,
तुम्हारे स्वर में अनुशासन।
तुम्हारी छाया में ही मिलता,
विद्या का सच्चा आलोकन।
कभी कठोर, कभी कोमल,
कभी मौन, तो कभी वाणी।
हर रूप में शिक्षा का मंदिर,
गुरु की महिमा है अनुपम कहानी।
तुम्हीं ने हमें सिखाया है,
सपनों की डोर थामनी।
असफलता से डर न पाना,
संघर्ष में भी मुस्कुरानी।
पुस्तकों का हर पन्ना गाता,
तुम्हारी तपस्या की वंदना।
गुरु बिना अधूरा जग सारा,
गुरु से पूर्ण हो साधना।
आज हम सब नत-मस्तक हैं,
तुम्हारी अमिट छवि के आगे।
शिक्षक! तुम हो वह दीपक,
जो जलते रहते अंधकार भागे।
दीप से दीप जला कर ही,
संसार नया आकार लेता।
गुरु के चरणों की वंदना से,
हर मानव ऊँचा उठता।
(एमए में स्वर्ण पदक विजेता रहीं ईशा हिंदी की शिक्षक होने के साथ-साथ पीएचडी स्कॉलर भी हैं।)
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