Brahmakapal Badrinath: The Ultimate Place for Pitra Tarpan and Pind Daan
पितृपक्ष के दौरान बदरीनाथ धाम स्थित ब्रह्मकपाल तीर्थ में तर्पण व पिंडदान के लिए देश-विदेश से सनातन धर्मावलंबी पहुंचते हैं। मान्यता है यहां पिंडदान के बाद पितर मोक्ष के अधिकारी हो जाते हैं। फिर कहीं पिंडदान करने की जरूरत नहीं रह जाती।
देहरादून, 07 सितंबर 2025 : बदरीनाथ धाम में एक ऐसा स्थान है, जहां तर्पण व पिंडदान करने से पितर जीवन-मरण के बंधन से मुक्त हो जाते हैं। साथ ही परिजनों को भी पितृदोष से मुक्ति मिल जाती है। मान्यता है कि यहां भागवान शिव को ब्रह्म हत्या के पाप से यहीं मुक्ति मिली थी। पुराणों में कहा गया है कि पितृ तर्पण के लिए जो माहात्म्य बिहार स्थित गया तीर्थ का बताया गया है, वही माहात्म्य बदरीनाथ धाम ( Badrinath Dham) में मंदिर से 200 मीटर पहले अलकनंदा नदी के तट पर स्थित ब्रह्मकपाल (Brahmakapal) तीर्थ का भी है। ‘याज्ञवल्क्य स्मृति’ में महर्षि याज्ञवल्क्य लिखते हैं, ‘आयु: प्रजां, धनं विद्यां स्वर्गं, मोक्षं सुखानि च। प्रयच्छन्ति तथा राज्यं पितर: श्राद्ध तर्पिता।’ (पितर श्राद्ध से तृप्त होकर आयु, पूजा, धन, विद्या, स्वर्ग, मोक्ष, राज्य एवं अन्य सभी सुख प्रदान करते हैं।)
तर्पण के लिए ब्रह्मकपाल आते हैं देश-दुनिया के लोग
सनातनी परंपरा में हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से लेकर आश्विन कृष्ण अमावस्या तक पितृपक्ष मनाया जाता है। इस दौरान हजारों की संख्या में लोग पितरों के तर्पण व पिंडदान के लिए ब्रह्मकपाल (Brahmakapal) तीर्थ आते हैं। ब्रह्मकपाल तीर्थ की कथा भगवान शिव और ब्रह्मा से जुड़ी है। मान्यता है कि भगवान शिव ने जब अहंकार के वशीभूत हुए ब्रह्माजी का पार्श्व शीश (पांचवां सिर) काट दिया तो वह त्रिशूल पर चिपक गया। इससे माता पार्वती परेशान हो गईं कि अब भगवान को ब्रह्म हत्या का पाप लगेगा। उन्होंने भगवान से कहा कि आप गया तीर्थ जाकर पिंडदान करें। इससे आपको ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिल जाएगी। भगवान शिव ने ऐसा ही किया, लेकिन वह इस पाप से मुक्त नहीं हुए। इसके बाद उन्होंने काशी (Kashi) व हरद्विार (Haridwar) में भी पिंडदान किया, लेकिन ब्रह्म हत्या से मुक्ति नहीं मिली।
यहां मिली ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति
माता पार्वती ने यह बाात नारदजी को बताई तो उन्होंने भगवान से बदरीनाथ धाम (Badrinath Dham) जाकर पिंडदान करने को कहा। भगवान शिव ने ऐसा ही किया और वह माता पार्वती के साथ बदरीनाथ धाम पहुंचे। यहां उन्होंने अलकनंदा नदी के तट पर पिंडदान किया। इसके बाद त्रिशूल से चिपका हुआ ब्रह्माजी का पार्श्व शीश छिटककर जमीन पर आ गिरा और शिलारूप में प्रतिष्ठित हो गया। तीर्थ पुरोहित पंडित मोहित सती के अनुसार पूजा सफल होने पर भगवान शिव व माता पार्वती ने कहा कि जो भी व्यक्ति यहां आकर पितरों का तर्पण व पिंडदान करेगा, उसे फिर कहीं पिंडदान करने की जरूरत नहीं होगी। ब्रह्मकपाल (Brahmakapal) तीर्थ में भगवान बदरी नारायण के लगने वाले भोग के चावल से ही पिंडदान होता है। पिंड पके हुए चावल से तैयार किये जाते हैं।
सर्वश्रेष्ठ है ब्रहृमकपाल तीर्थ में पिंडदान
स्कंद पुराण के केदारखंड में कहा गया है कि पिंडदान के लिए गया (बिहार), पुष्कर (राजस्थान), हरिद्वार (उत्तराखंड), प्रयागराज और काशी (उत्तर प्रदेश) भी श्रेयस्कर हैं, लेकिन भू-वैकुंठ बदरीनाथ धाम स्थित ब्रह्मकपाल (Brahmakapal) तीर्थ में किया गया पिंडदान इन सबसे श्रेष्ठ है। श्रीमद् भागवत महापुराण में उल्लेख है कि महाभारत (Mahabharata) के युद्ध में बंधु-बांधवों की हत्या करने पर पांडवों (Pandav) को गोत्र हत्या का पाप लगा। इससे मुक्ति पाने को स्वर्गारोहिणी यात्रा पर जाते हुए उन्होंने ब्रह्मकपाल (Brahmakapal) तीर्थ में पितरों को तर्पण किया था। इसके बाद ही वे गोत्र हत्या के पाप से मुक्त हुये।