Brahmakapal Tirth Badrinath: The Ultimate Place for Pitru Paksha Tarpan\
बदरीनाथ, 10 सितंबर 2025 : पितृपक्ष के अवसर पर उत्तराखंड के चमोली जिले स्थित बदरीनाथ धाम का ब्रह्मकपाल तीर्थ हजारों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बन गया है। मान्यता है कि यहां तर्पण और पिंडदान करने से पितर मोक्ष को प्राप्त होते हैं और व्यक्ति को जीवनभर कहीं और पिंडदान करने की आवश्यकता नहीं रहती। इसी विश्वास के चलते देश ही नहीं, विदेशों से भी श्रद्धालु हर साल पितृपक्ष के दौरान यहां पहुंचते हैं।
सनातन परंपरा के अनुसार भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से लेकर आश्विन कृष्ण अमावस्या तक पितृपक्ष मनाया जाता है। इस पवित्र काल में ब्रह्मकपाल तीर्थ पर तर्पण और पिंडदान का विशेष महत्व माना गया है। यहां पिंडदान भगवान बदरी नारायण को अर्पित भोग के चावल से किया जाता है। पके हुए चावल से पिंड बनाए जाते हैं और विशेष विधि-विधान के साथ पितरों को अर्पित किए जाते हैं।
ब्रह्मकपाल तीर्थ की कथा भगवान शिव और ब्रह्माजी से जुड़ी है। कहा जाता है कि एक बार अहंकार से ग्रसित होकर ब्रह्माजी ने पांचवां सिर उत्पन्न कर लिया। भगवान शिव ने जब यह देखा तो क्रोध में आकर उन्होंने अपना त्रिशूल चलाकर ब्रह्माजी का पार्श्व शीश काट दिया। लेकिन वह त्रिशूल से चिपक गया। इस घटना से माता पार्वती चिंतित हो उठीं कि भगवान शिव पर ब्रह्म हत्या का पाप लगेगा। इस प्रसंग को नारदजी ने सुना तो उन्होंने सुझाव दिया कि भगवान शिव को बदरीनाथ धाम में जाकर पिंडदान करना चाहिए।
मान्यता है कि भगवान शिव माता पार्वती के साथ बदरीनाथ धाम पहुंचे और अलकनंदा नदी के तट पर उन्होंने पिंडदान किया। तभी त्रिशूल से चिपका ब्रह्माजी का वह सिर छिटककर नीचे गिर पड़ा और शिला स्वरूप में प्रतिष्ठित हो गया। तभी से यह स्थान ब्रह्मकपाल कहलाया। कहा जाता है कि यहां सफलतापूर्वक पिंडदान और तर्पण करने वाले व्यक्ति के पितर सदैव के लिए तृप्त हो जाते हैं।
इसी आस्था और मान्यता के कारण आज भी पितृपक्ष के दौरान ब्रह्मकपाल तीर्थ पर श्रद्धालुओं का रेला उमड़ता है। हर वर्ष हजारों लोग यहां आकर अपने पितरों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हैं और उन्हें मोक्ष दिलाने की कामना करते हैं। बदरीनाथ धाम की अलौकिक छटा और अलकनंदा के तट पर स्थित ब्रह्मकपाल श्रद्धालुओं के लिए वह आस्था केंद्र है, जहां से पितरों के तर्पण का संकल्प शाश्वत माना जाता है।