Karligad River Disaster: Aftermath of the Flood in Dehradun

देहरादून, 25 सितंबर 2025 : कहर बरपाने के बाद अब कार्लीगाड की लहरें शांत हैं। नदी की सरल रवानगी देख यह एहसास ही नहीं होता कि महज सप्ताहभर पहले इसमें उठी सुनामी ने इलाके को इतिहास की गर्द में धकेल भूगोल भी बदल डाला। जिस नदी के तट पर सैलानी सुकून के साथ घंटो अठखेलियां करते थे, वहां अब रेत में धंसे विशाल बोल्डरों के साथ कार के अवशेष नजर आ रहे हैं। वो शानदार सैरगाह, भव्य रिजोर्ट और रेस्तरां की इमारतें सब मटियामेट हो चुकी है। अब आलम यह है कि नदी की धारा छोर तक बदल चुकी है। जहां यह पहले बहती थी, वह किनारा दूर हो गया है। आपदा में अपना रिजोर्ट गंवा चुके कार्लीगाड के रहने वाले रवि नेगी कहते हैं ‘हमारे बुजुर्ग कहते थे कि नदी पहले इसी स्थान पर बहती थी, जहां वह आज है।’ शायद नदी अपने घर लौट आई है, लेकिन एक बडी कीमत वसूलकर।

कार्लीगाड के दोनों छोर पहले कहां तक थे, अब इसकी पहचान करना आसान नहीं है। मलबे के ढेर में बामुश्किल समझ में आता है कि यह किसी मकान के अवशेष हैं। आरपार जाने के लिए बना लोहे का पुल उफनती लहरों के क्रोध का शिकार हुआ तो अपने स्थान से करीब आधा किलोमीटर दूर पिचका हुआ सा पडा है। इन दिनों धारा को पार करने के लिए जुगाड का सहारा लिया जा रहा है। कुछ तख्तों के जरिये उस पार तक का सफर मुमकिन हो पा रहा है। नदी पार करने के बाद किनारे पर मलबे के विशाल ढेर के पास खडे रवि नेगी से मुलाकात होती है। रवि एक ऐसे ही एक ढेर की ओर इशारा करते हुए बताते हैं कि वो उनका रिजोर्ट है। हालांकि कुछ दूरी पर उनके एक भवन को कम नुकसान पहुंचा, लेकिन भीतर तक रेेत और कीचड भरा हुआ है।

कार्लीगाड के राकेश नेगी का दर्द उनकी आंखों में छलक आता है। वह बताते हैं कि उन्होंने अपनी सारी जमा-पूंजी झोंक एक रिजार्ट बनाया था। यह सोचकर, सैलानियों को सुकून देने वाली यह आरामगाह उनके भविष्य की नींव सुदृढ करेगी, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। मलबे से लबालब भरे रिजार्ट का पता ही नहीं चल रहा। इस भव्य रिजोर्ट का शुभारंभ महज छह माह पहले ही हुआ था। डूबती आवाज में राकेश बताते हैं कि सब बरबाद हो गया। बातों ही बातों में वह वर्ष 2011 की आपदा को भी याद करते हैं। तब भी नदी का रूप विकराल था, लेकिन नुकसान आज की अपेेेेक्षा कुछ कम था। यह सवाल पूछने पर कि क्या आपको यह नहीं लग रहा था कि ये विहंगम दृश्य प्रकृति के प्रकाेेप से विद्रूप भी हो सकते हैं। राकेश जवाब देते हैं ‘ हां, यह सही है कि कुदरत की खामोशी कब खौफनाक हो जाए कहा नहीं जा सकता।’ यह बात कार्लीगाड के कहर से मिला सबक भी है। प्रख्यात शायर निदा फाजली की ये लाइनें बेहद मौजूं लग रही है कि ‘क्रोधित नदी में छुपी है इतिहास की आवाज, जो न पहचाने, वो बहकर खो जाएगा’।
