Gaagli War 2025: Jaunsar-Bawar’s Unique Paanta Festival on Dussehra
देहरादून, 3 अक्टूबर 2025ः देहरादून जिले के जनजातीय क्षेत्र जौनसार-बावर की हरी-भरी देवधार घाटी गुरुवार को उत्साह और रोमांच से भर उठी। ढोल-नगाड़ों की थाप, रणसिंघे की गूंज और ग्रामीणों की हुंकार से पूरी घाटी गूंज रही थी। अवसर था अनोखे गागली युद्ध का, जो हर साल दशहरे पर पाइंता पर्व के रूप में मनाया जाता है।
कालसी ब्लाक के उत्पाल्टा और कुरोली गांव के ग्रामीण हाथों में अरबी के डंठल और पत्ते लिए आमने-सामने थे। देखते ही देखते दोनों गांवों के बीच कई घंटे तक गागली के पत्तों-डंठलों से जोरदार मुठभेड़ चली। युद्ध का दृश्य इतना आकर्षक था कि आसपास के गांवों से भी बड़ी संख्या में लोग इसे देखने पहुंचे।
युद्ध के बाद परंपरा के अनुसार दोनों गांवों के लोग आपस में गले मिले और मिलकर नृत्य किया। उत्पाल्टा गांव का पंचायती आंगन फिर लोक संस्कृति से सराबोर हो उठा। महिलाएं सामूहिक रूप से तांदी, झेंता व रासो नृत्य करती नजर आईं, ढोल-नगाड़ों की थाप ने वातावरण को और भी जीवंत बना दिया।
ये है मान्यता
गागली युद्ध केवल मनोरंजन या उत्सव भर नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक दर्दनाक घटना और पश्चाताप की परंपरा छिपी है। किवदंती के अनुसार, उत्पाल्टा गांव की बहनें रानी और मुन्नी एक दिन पानी भरने कुएं पर गईं। पानी भरते समय रानी कुएं में गिर गई। जब मुन्नी ने गांव जाकर यह बताया तो ग्रामीणों ने उल्टा उस पर बहन को धक्का देने का आरोप लगा दिया। इससे दुखी मुन्नी ने भी कुएं में छलांग लगाकर जान दे दी। ग्रामीणों को बाद में अपनी भूल और अन्याय का गहरा पछतावा हुआ। तभी से पाइंता पर्व की शुरुआत हुई। इस दिन दोनों बहनों की मूर्तियों की पूजा कर उन्हें कुएं में विसर्जित किया जाता है। इसके बाद उत्पाल्टा और कुरोली गांव के लोग गागली युद्ध के माध्यम से अपना पश्चाताप व्यक्त करते हैं।