Multilingual Poets’ Meet Captivates Audience at Himalayan Cultural Centre in Dehradun
देहरादून, 10 नवंबर2025 : हिमालयन सांस्कृतिक केंद्र में संस्कृति विभाग द्वारा आयोजित बहुभाषी कवि सम्मेलन में गीत, ग़ज़लों और कविताओं का ऐसा जादू चला कि पूरा सभागार साहित्यिक रंग में सराबोर हो गया। कार्यक्रम की शुरुआत मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन से हुई।
काव्य-पाठ की शुरुआत युवा शायर राजकुमार राज़ ने अपनी पंक्ति “झूठ कितना भी हो दमदार मगर सच की बुनियाद हिलाने से रहा” सुनाकर की, जिसने श्रोताओं को तुरंत ही बांध लिया। कुमाऊँनी कवि भूपेंद्र बसेड़ा की कविता “आहा कतुक बान हैगी… हमोरो उत्तराखण्ड ज्वान हैगी” को जबरदस्त सराहना मिली।
श्रीकांत श्री ने उत्तराखंड की महानता को समर्पित गीत “इसी धरा पर भागीरथ ने कठिन तपस्या की थी…” गुनगुनाकर तालियाँ बटोरीं। संचालन कर रहे लक्ष्मी प्रसाद बडोनी ‘दर्द गढ़वाली’ ने अपनी मार्मिक ग़ज़ल “क्या-क्या चीजें रख रक्खी थी बक्से में…” सुनाकर भावनात्मक वातावरण बना दिया।
रंवाल्टी कवि महाबीर रंवाल्टा की कविता ‘ढोल बणें…’ और जौनसारी कवि फकीरा सिंह चौहान की रचना “सुखो कै सबिया साथी…” को भी विशेष पसंद किया गया।
गढ़वाली कवि भूपेंद्र सिंह कंडारी ने पहाड़ की विकास योजनाओं पर तीखा व्यंग्य करते हुए यह कविता सुनाई—
“जू नहीं जाणदा कि ह्वै उकाल उन्दार,
जौन नि बोकिन मौला कन्या,
नी लगे मोल-जोल,
तौन बणायिन एसी कमरों मां बैठी
मेरे पहाड़ की विकास योजनाएं।”
उनकी इन पंक्तियों ने श्रोताओं के बीच गहरा प्रभाव छोड़ा।
इस दौरान नीरज नैथानी ने “बिना आंसू कु डबकणु छौं…” कविता पर तालियाँ बटोरीं। डॉ. नंदलाल भारती की जौनसारी रचना “भल माणशो मनखियो…” को भी खूब सराहा गया।
कार्यक्रम में ‘आवाज़ सुनो पहाड़ों की’ के संयोजक नरेंद्र रौथाण, भाजपा प्रवक्ता सुरेश जोशी, उमेश कन्नौजिया, भारत चौहान, अनिल चन्दोला, भुवन प्रकाश बडोनी, प्रेम पंचोली सहित अनेक साहित्यप्रेमी उपस्थित रहे।
