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Reading: सितंबर में 101 साल पहले दून में हुई थी ‘जल प्रलय’
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Himalaya Ki Awaj > Blog > उत्तराखंड > सितंबर में 101 साल पहले दून में हुई थी ‘जल प्रलय’
उत्तराखंड

सितंबर में 101 साल पहले दून में हुई थी ‘जल प्रलय’

Web Editor
Last updated: 2025/09/04 at 2:48 AM
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Dehradun’s Historical Flood of 1924 | A Monsoon Disaster

सितंबर 1924 में दर्ज की गई थी 1014 मिमी बारिश, आज भी कायम है रिकार्ड

इसी वर्ष 03 सितंबर को हुई थी सर्वाधिक 212 मिमी बारिश, ये रिकार्ड आज भी बरकरार

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Contents
Dehradun’s Historical Flood of 1924 | A Monsoon Disasterसितंबर 1924 में दर्ज की गई थी 1014 मिमी बारिश, आज भी कायम है रिकार्डइसी वर्ष 03 सितंबर को हुई थी सर्वाधिक 212 मिमी बारिश, ये रिकार्ड आज भी बरकरार

देहरादून, 4 सितंबर 2025 : महज 12 वर्ष पहले केदारनाथ में आई जल प्रलय को भला कौन भूल सकता है। आज भी तबाही के वो मंजर याद आते ही रूह कांप जाती है। इस बार भी मानसून के आक्रामक तेवर भयभीत कर रहे हैं। सितंबर की शुरुआत में ही देहरादून जिले में 139.2 मिमी बारिश दर्ज की जा चुकी है, जो महीने के औसत का लगभग आधा है। बीते तीस वर्षों के औसत पर निगाह दौडाएं तो सितंबर के लिए यह आंकडा 305 मिमी बनता है। चलिए एक बार फिर इतिहास इसी माह में झांकते हैं।  तब कुछ रोचक जानकारियां सामने आती हैं। आज से 101 साल पहले दून में जल प्रलय जैसे हालात थे। हालांकि उस वक्‍त के नुकसान के रिकार्ड उपलब्‍ध नहीं हैं, मगर जो कुछ मुहैया हो पाया, वो भी कम चौंकाने वाला नहीं है।

बात सितंबर 1924 की। देहरादून और उसके आसपास के इलाके मानो बादलों की गिरफ्त में आ गए थे। यूं तो एक सितंबर से ही मौसम के तेवर ठीक नहीं थे, लेकिन तीन सितंबर को तो मानो आसमान ही टूट पडा। यह साक्षात प्रलय का दृश्‍य था। जिधर देखो पानी ही पानी। उस दिन दून में 212.6 मिमी पानी बरसा। जो कि सितंबर में एक दिन में हुई बारिश का आज भी रिकार्ड है। उस समय दून की सड़कें, पुल और इमारतें पानी में डूब चुकी थीं। मौसम विभाग के रिकॉर्ड बताते हैं कि उस महीने देहरादून में कुल 1014.0 मिमी बारिश दर्ज की गई थी। यह कोई मामूली आंकड़ा नहीं था, बल्कि यह अब तक का सबसे ज्यादा बारिश का रिकॉर्ड है। आज के हालात को देखें तो यह लगभग तीन गुना से भी ज्यादा है। कल्पना कीजिए, लगातार मूसलाधार बारिश ने कैसा कहर ढाया होगा। यह हालात केवल दून के ही नहीं थे, ऋषिकेश में भी स्थिति नाजुक थी। गंगा नदी के वेग ने लक्ष्मण झूला के मूल जूट के पुल को बहा दिया था। इस आपदा के बाद ही 1930 में नया पुल बनाया गया।

आज हम ऐसे दौर में खड़े हैं, जब मौसम विभाग हमें पहले ही अलर्ट कर रहा है। वर्ष 1924 में ऐसी कोई तकनीक नहीं थी। उस समय के लोगों ने प्रकृति के इस रौद्र रूप को बिना किसी चेतावनी के झेला था। इतिहास का यह भयावह अध्याय हमें सिखाता है कि प्रकृति के सामने इंसान कितना छोटा है। आज जब हम इस रिकॉर्ड तोड़ बारिश को याद करते हैं, तो 1924 में हुए नुकसान की गंभीरता को समझ पाते हैं, जिसने उत्तराखंड के इतिहास में एक अमिट छाप छोड़ी।

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Web Editor September 4, 2025
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