Beyond Rituals: Understanding the Scientific and Spiritual Significance of Shradh
गणेश काला
(होलिस्टिक माइंड वैलनेस कोच एवं हीलर ग्रेंड मास्टर)
श्राद्ध और तर्पण को केवल धार्मिक अनुष्ठान मान लेना इसक महत्ता को कम कर देने जैसा है। जबकि, यह ऐसा वैज्ञानिक और आध्यात्मिक सेतु है, जो हमें पूर्वजों से जोड़ने के साथ ब्रह्मांडीय ऊर्जा से सामंजस्य बिठाता है। एक तरह से यह पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्ति करने का पर्व है। श्राद्ध का वास्तविक अर्थ है, श्रद्धा से किया गया कार्य। पितरों के प्रति आभार प्रकट करना और उन्हें जल, अन्न व तिल अर्पित करना। यह केवल दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए नहीं, बल्कि जीवित वंशजों के मानसिक और ऊर्जात्मक संतुलन के लिए भी ज़रूरी माना गया है। सनातनी परंपरा कहती है कि, ‘ श्रद्धया पितृयज्ञः परं पुण्यम् ’ अर्थात् पितरों यानी पूज्यजनों के लिए श्रद्धा से किया गया यज्ञ ही सबसे बड़ा पुण्य है।
डीएनए और पूर्वजों की स्मृति
विज्ञान कहता है कि पूर्वजों की आदतें, आघात और अनुभव हमारे डीएनए में छिपे रहते हैं। आधुनिक एपिजेनेटिक्स इसे प्रमाणित करता है। पीढ़ियों से चला आ रहा कोई तनाव या रोग परिवार में बार-बार दिखता ह तो उसके पीछे यही जीन स्मृति काम करती है। श्राद्ध और तर्पण के अनुष्ठान इन अदृश्य गांठों को खोलने का माध्यम हैं। जब हम मंत्रोच्चार के साथ जल अर्पित करते हैं, तो यह हमारे अवचेतन में दबे बोझ को हल्का करता है।
ब्रह्मांड और एटम का रहस्य
सनातन शास्त्र कहते हैं, ‘यथा पिंडे तथा ब्रहमांडे’। जिस तरह हमारा शरीर अणुओं (atoms) से बना है, उसी तरह पूरा ब्रह्मांड ऊर्जा और सूक्ष्म कणों से बना है। जब तर्पण में जल प्रवाहित किया जाता है, तो उसमें उत्पन्न ध्वनि और तरंगें वातावरण में फैलकर ब्रह्मांडीय ऊर्जा से जुड़ जाती हैं। आधुनिक विज्ञान मानता है कि जल अणु (H₂O) अपनी संरचना के कारण सूचना संचित कर सकते हैं। इसलिए जब हम मंत्रों के साथ जल अर्पित करते हैं, तो वे तरंगें जल में बंधकर दूर तक कंपन के रूप में फैलती हैं।
कॉस्मिक एनर्जी और आत्मिक शांति
श्राद्ध का सबसे बड़ा प्रभाव हमारी Aura Field यानी ऊर्जा-कवच पर होता है। मंत्रों की ध्वनि तरंगें हमारे मस्तिष्क और नाड़ियों पर गहरा असर डालती हैं। नकारात्मक ऊर्जा और पितृ दोष जैसे मानसिक अवरोध धीरे-धीरे समाप्त होते हैं। व्यक्ति के जीवन में स्थिरता, संतुलन और आत्मविश्वास आता है।
जैसी करनी, वैसी भरनी
श्राद्ध केवल व्यक्तिगत कर्मकांड नहीं है। यह हमें याद दिलाता है कि हम अकेले नहीं हैं, बल्कि पूर्वजों की पूरी श्रृंखला का हिस्सा हैं। जब हम अपने पितरों को सम्मान देते हैं, तो आगे की पीढ़ियां भी हमें वही सम्मान लौटाती हैं। यही सामाजिक संतुलन और पारिवारिक सामंजस्य का मूल है। सनातन परंपरा में कहा गया है – ‘ श्रद्धया पितृयज्ञः परं पुण्यम् ’ यानी पितरों के लिए श्रद्धा से किया गया यज्ञ ही सबसे बड़ा पुण्य है।