Buddha’s Sacred Relics on Display in Russia: Kalmykia Hosts International Buddhist Forum

नई दिल्ली, 23 सितंबर 2025 : भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेषों की पहली प्रदर्शनी अब रूस की धरती पर होने जा रही है। भारत सरकार का संस्कृति मंत्रालय, अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (आईबीसी), राष्ट्रीय संग्रहालय और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के संयुक्त प्रयास से काल्मिकिया की राजधानी एलिस्टा में 24 से 28 सितंबर तक तीसरा अंतरराष्ट्रीय बौद्ध मंच आयोजित किया जा रहा है। इस मंच का सबसे बड़ा आकर्षण होगा I नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय से लाए गए शाक्यमुनि बुद्ध के पवित्र अवशेष, जिन्हें भारतीय वायुसेना के विशेष विमान से पूर्ण धार्मिक विधि-विधान और प्रोटोकॉल के साथ काल्मिकिया ले जाया गया है।
पवित्र अवशेषों के साथ एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल भी रूस पहुँचा है, जिसका नेतृत्व उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य कर रहे हैं। प्रतिनिधिमंडल में आईबीसी के महानिदेशक, 43वें शाक्य त्रिजिन रिनपोछे, 13वें कुंडलिंग तकत्सक रिनपोछे, 7वें योंगजिन लिंग रिनपोछे समेत अनेक वरिष्ठ भिक्षु शामिल हैं। यह प्रतिनिधिमंडल काल्मिकिया की बौद्ध बहुल आबादी के बीच प्रार्थना करेगा और स्थानीय श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देगा।
इस अवसर पर राष्ट्रीय संग्रहालय और आईबीसी द्वारा चार विशेष प्रदर्शनियाँ भी लगाई जाएंगी। इनमें “बुद्ध के जीवन की चार महान घटनाएँ”, “स्थायित्व की कला” और कपिलवस्तु, पिपरहवा से मिली विरासत से जुड़ी प्रदर्शनी प्रमुख हैं। इसके अलावा, प्रसिद्ध कलाकार पद्मश्री वासुदेव कामथ भी अपनी कृतियाँ यहाँ प्रस्तुत करेंगे। मंच पर 35 से अधिक देशों के आध्यात्मिक गुरू और अतिथि भी भाग ले रहे हैं, जिससे यह आयोजन एक अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक संगम का रूप ले चुका है।
रूस और बौद्ध धर्म का पुराना रिश्ता
काल्मिकिया को आज यूरोप का एकमात्र बौद्ध क्षेत्र माना जाता है, लेकिन इसकी कहानी सदियों पुरानी है। 17वीं सदी की शुरुआत में ओइरात मंगोलों का एक बड़ा समूह पश्चिम की ओर बढ़कर वोल्गा नदी के मैदानों में आकर बस गया। ये लोग पहले से ही तिब्बती महायान परंपरा के अनुयायी थे। वोल्गा के किनारों पर स्थायी ठिकाना बनाने के बाद उन्होंने काल्मिक खानतंत्र की स्थापना की और बौद्ध धर्म को संगठित रूप दिया।
18वीं सदी में रूस साम्राज्य ने बौद्ध धर्म को कानूनी मान्यता प्रदान की। 1741 में महारानी एलीज़ाबेथा ने आधिकारिक रूप से बौद्ध धर्म को राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त धर्म घोषित किया और लामाओं व मठों को वैध दर्जा दिया। इसके बाद काल्मिकिया में दर्जनों खुरूल (बौद्ध मठ) स्थापित हुए और बौद्ध धर्म का सामाजिक जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा।
हालांकि सोवियत काल में इस परंपरा को भारी दमन झेलना पड़ा। 1930 के दशक में लगभग सभी खुरूल नष्ट कर दिए गए और लामाओं को निर्वासित कर दिया गया। काल्मिक लोगों को साइबेरिया तक निर्वासन का सामना करना पड़ा, जिससे बौद्ध धर्म लगभग समाप्ति के कगार पर पहुँच गया। लेकिन 1990 के दशक में सोवियत संघ के विघटन के बाद काल्मिकिया में धर्म और संस्कृति का पुनरुत्थान हुआ। 1996 में एलिस्टा में “गेडेन शेडुप चोइकोरलिंग मठ” की स्थापना की गई, जिसे “शाक्यमुनि बुद्ध का स्वर्णिम निवास” कहा जाता है। आज वही मठ भारत से पहुँचे बुद्ध अवशेषों की मेज़बानी कर रहा है।
भारत और रूस के बीच सांस्कृतिक सेतु
काल्मिकिया का यह आयोजन केवल एक धार्मिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि भारत और रूस के बीच सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रिश्तों का भी प्रतीक है। हाल ही में काल्मिकिया के भिक्षुओं के एक प्रतिनिधिमंडल ने भारत आकर इन अवशेषों को रूस ले जाने का अनुरोध किया था, ताकि वे अपने गृहनगर में इनकी पूजा और आशीर्वाद प्राप्त कर सकें। अब वही सपना साकार हो रहा है।
इस मंच पर भारत और रूस के बीच दो अहम समझौता ज्ञापनों पर भी हस्ताक्षर होंगे। पहला आईबीसी और रूस के केंद्रीय बौद्ध प्रशासन के बीच और दूसरा नालंदा विश्वविद्यालय के साथ। इसके साथ ही आईबीसी और संस्कृति मंत्रालय ‘कंजूर’ नामक मंगोलियाई धार्मिक ग्रंथ का 108 खंडों का एक दुर्लभ संग्रह भी नौ बौद्ध संस्थानों और एक विश्वविद्यालय को भेंट करेंगे।
काल्मिकिया में आयोजित यह प्रदर्शनी और मंच केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं हैं, बल्कि भारत और रूस के बीच गहरे ऐतिहासिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रिश्तों का उत्सव भी हैं। वोल्गा के किनारों पर बोए गए बौद्ध धर्म के बीज आज भारत से आए बुद्ध अवशेषों की आभा में पुनर्जीवित हो रहे हैं।
