देहरादून : उत्तराखंड हिमालय में स्थित विश्व प्रसिद्ध चारधाम यात्रा का शुभारंभ हो चुका है। अक्षय तृतीया पर 30 अप्रैल को यमुनोत्री व गंगोत्री धाम के कपाट खोल दिए गए हैं। जबकि, बारह ज्योतिर्लिंगों में शामिल केदारनाथ धाम के कपाट दो मई और भू-वैकुंठ बदरीनाथ धाम के कपाट चार मई को खोले जाएंगे। समुद्रतल से 4000 मीटर तक की ऊंचाई पर होने वाली यह यात्रा धर्म-अध्यात्म ही नहीं, रहस्य-रोमांच की यात्रा भी है। यह यात्रा तन-मन को शांति, सुकून व शीतलता तो प्रदान करती ही है, उत्तराखंडी लोक परंपराओं के दर्शन भी कराती है।
केदारनाथ
समुद्रतल से 11746 फीट की ऊंचाई पर मंदाकिनी नदी के उद्गम स्थल के समीप स्थित है केदारनाथ धाम। यहां पहुंचने के लिए गौरीकुंड से 16 किमी की दूरी पैदल तय करनी पड़ती है। पंचकेदार यात्रा में केदारनाथ को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। साथ ही केदारनाथ त्याग की भावना को भी दर्शाता है। यह वही जगह है, जहां शंकराचार्य 32 वर्ष की आयु में समाधि में लीन हुए थे। इससे पहले उन्होंने वीर शैव को केदारनाथ का रावल (मुख्य पुरोहित) नियुक्त किया। वर्तमान में 326वें रावल केदारनाथ धाम की व्यवस्था संभाल रहे हैं। केदारनाथ मंदिर न केवल अध्यात्म, बल्कि स्थापत्य कला में भी अन्य मंदिरों से भिन्न है। पहाड़ी की तलहटी में यह मंदिर कत्यूरी शैली में निर्मित है। इसके निर्माण में भूरे रंग के बड़े पत्थरों का प्रयोग बहुतायत में हुआ है। मंदिर के
शिखर पर सोने का कलश स्थापित है, जबकि बाह्य द्वार पर पहरेदार के रूप में नंदी विराजमान हैं। मंदिर के तीन भाग हैं, पहला गर्भगृह, दूसरा दर्शन मंडप, तीसरा सभा मंडप। यात्री यहां भगवान शिव के अलावा ऋद्धि-सिद्धि के दाता श्रीगणेश, माता पार्वती, श्रीविष्णु, माता लक्ष्मी, श्रीकृष्ण, कुंती, द्रौपदी, युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव की पूजा-अर्चना भी करते हैं।
नजदीकी हवाई अड्डा : जौलीग्रांट 251 किमी
नजदीकी रेलवे स्टेशन : ऋषिकेश 234 किमी , कोटद्वार 260 किमी
सड़क सुविधा : हरिद्वार-ऋषिकेश से यहां पहुंच सकते हैं।
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बदरीनाथ
बदरीनाथ धाम नर-नारायण पर्वत के मध्य समुद्रतल से 10276 फीट (3133 मीटर) की ऊंचाई पर स्थित है। अलकनंदा नदी इस मंदिर की खूबसूरती पर चार चांद लगाती है। मान्यता है कि भगवान नारायण इस स्थान पर ध्यानमग्न रहते हैं। नारायण को छाया प्रदान करने के लिए माता लक्ष्मी ने बेर (बदरी) के पेड़ का रूप धारण किया। लेकिन, वर्तमान में यहां बेर बहुत कम संख्या में देखने को मिलते हैं। नारद, जो इन दोनों के अनन्य भक्त हैं, उनकी आराधना भी यहां की जाती है। बदरीनाथ में वर्तमान मंदिर का निर्माण दो सदी पहले गढ़वाल के राजा ने किया था। लगभग 15 मीटर ऊंचा यह मंदिर शंकुधारी शैली में बना हुआ है। मंदिर के शिखर पर गुंबद है और गर्भगृह में श्रीहरि के साथ नर-नारायण ध्यान की स्थिति में विराजमान हैं। ऐसा माना जाता है कि मूल मंदिर का निर्माण वैदिक काल में हुआ था, जिसका पुनरुद्धार आठवीं सदी में शंकराचार्य ने किया। मंदिर में नर-नारायण के अलावा लक्ष्मी, शिव-पार्वती और गणेश की मूर्ति भी है। मंदिर के तीन भाग हैं- गर्भगृह, दर्शन मंडप और सभागृह। वेदों और ग्रंथों में बदरीनाथ के संबंध में कहा गया है कि स्वर्ग और पृथ्वी पर अनेक पवित्र स्थान हैं, लेकिन बदरीनाथ इन सभी में अग्रगण्य है। बदरीनाथ पंच बदरी मंदिरों में प्रमुख धाम है।
नजदीकी हवाई अड्डा : जौलीग्रांट 315 किमी
नजदीकी रेलवे स्टेशन : ऋषिकेश 297 किमी
सड़क मार्ग : हरिद्वार , ऋषिकेश से यहां पहुंचा जा सकता है।