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Himalaya Ki Awaj > Blog > उत्तराखंड > Uttarkashi Dharali disaster : कहीं धराली के मलबेे में दफन तो नहीं रैणी आपदा जैसे निशान ?
उत्तराखंड

Uttarkashi Dharali disaster : कहीं धराली के मलबेे में दफन तो नहीं रैणी आपदा जैसे निशान ?

Web Editor
Last updated: 2025/08/06 at 3:39 PM
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4 Min Read
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Uttarkashi’s Dharali Disaster: Cloudburst or Glacier Burst? Experts Raise Questions

Uttarkashi Dharali disaster :  देहरादून, 06 अगस्‍त 2025 :  क्‍या आपको रैणी आपदा याद है। आज से चार साल पहले सात फरवरी 2021 को सीमांत चमोली जिले के रैणी गांव के पास ऋषिगंगा में आए उफान से दो जल विद्वुत परियाजनाएं पूरी तरह तबाह हो गईं और 200 से ज्‍यादा लोग अपने जीवन से हाथ धो बैठे। अब ठीक चार साल बाद उत्‍तरकाशी के धराली में भी यह सब दोहराया गया। रैणी गांव में आई आपदा के वक्‍त वायरल हुए वीडियो और धराली में आई आपदा के वीडियो में काफी साम्‍यता देखने को मिल रही है। दोनों ही जगह उठने वाली लहरें सुनामी की मानिंद थीं। हालांकि रैणी में आई आपदा का कारण ग्‍लेश्यिर का टूटना था और धराली आपदा की वजह बादल फटना बताया जा रहा है। यह अलग बात है कि स्‍थानीय लोगों के साथ ही हिमालय क्षेत्र को जानने वालों को आशंका सता रही है कि कहीं इस आपदा की वजह भी ग्‍लेश्यिर में बनी झील तो नहीं। यह सही है कि असल वजह तो वैज्ञानिकों के अध्‍ययन के बाद ही सामने आएगी।

दरअसल, इलाके के लोगों के पास इस आशंका को लेकर कुछ वजह भी हैं। उत्‍तरकाशी की हर्षिल घाटी में हुई तबाही के लिए तीन नदियां जिम्‍मेदार हैं। इनमेंं एक है खीर गंगा, दूसरी तेल गंगा और तीसरी है भेला नदी। अब जरा इनके उदगम स्‍थल पर नजर डालते हैं। खीर गंगा श्रीकंठ ग्‍लेश्यिर से निकलकर झिंडा बुग्‍याल से ही हुए भागीरथी नदी में समा जाती है। वहीं तेल गंगा का उदगम स्‍थल है हिमाल व मैनक ग्‍लेश्यिर। यह हर्षिल में सेना के शिविर के पास भागीरथी में मिलती है और इसके बाद है भेला नदी। भेला नदी अवाना ग्लेशियर से होते हुए सुक्की डाउन में भागीरथी से संगम करती है।

हर्षिल घाटी के जानकार और झिंड़ा बुग्याल, सातलाल और अवाना बुग्याल की ट्रेकिंग कर चुके एवरेस्ट विजेता विष्णु सेमवाल कहते हैं कि यह घटना बादल फटने के अलावा ग्लेशियर में बनी झील के टूटने से भी हो सकती है। वह कहते हैं कि पिछले तीन दिन से हर्षिल घाटी में भारी वर्षा हो रही है और श्रीकंठ, अवाना बुग्याल की पहाड़ी के लगभग सभी गाड़-गदेरे उफान पर हैं। झिंडा बुग्याल क्षेत्र में पुराने ग्लेशियर का मलबा ठहरा हुआ है। वह आशंका जताते हैं कि यह मलबा भी इस उफान में आया होगा। वह कहते हैं कि हम ग्लेशियर, बुग्याल, इन क्षेत्रों से निकलती नदी कि प्रकृति और उसके बहाव के पैटर्न को सही ढंग से नहीं समझ पाएं हैं। सामाजिक कार्यकर्ता और एसडीसी फाउंडेशन से जुडे अनूप नौटियाल कहते हैं कि विकास के अहंकार में हमने प्रकृति काे बौना साबित करने की कोशिश की है। विकास योजनाओं की प्‍लानिंग के वक्‍त प्रकृति से सामंजस्‍य को भी ध्‍यान में रखना होगा। हिमालयी क्षेत्र की वास्‍तविकता को समझे बिना आगे बढे तो हालात गंभीर ही होंगे।

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Web Editor August 6, 2025
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