uttarakhand village forest laws : Uttarakhand Village: No Celebrations, Roads, or Electricity Due to Forest Laws
uttarakhand village forest laws : कोटद्वार, 10 अगस्त 2025 : जरा सोचिए, घर में विवाह का जश्न हो और बैंड-बाजा गायब, तो आपको कैसा महसूस होगा। उत्तराखंड के पौडी जिले के रिखणीखाल ब्लाक में एक गांव ऐसा ही है, जहां शादी-विवाह के अवसर पर ढोल-दमाऊं या बैंड-बाजा नहीं बजाया जाता। ऐसा नहीं कि ये गांव का रिवाज है। दरअसल, यह वन काूननों के आगे उनकी बेबसी का परिचायक है। इतना ही नहीं, गांव के लोग दीपावली के अवसर पर न तो पटाखे फोड सकते हैं और न ही तेज रोशनी कर सकते हैं। गांव में बिजली तक नहीं है, यदि है ताेे सोलर लाइटों का सहारा। यह अलग बात है कि उनमें से भी ज्यादातर खराब पडी हैं। सडक को लेकर भी कोई उम्मीद नजर नहीं आती। वन्य जीवों के चलते खेत बंजर हो चुके हैं और लोग पलायन को मजबूर।
यह कहानी है ग्राम तैड़िया-पैनो की। चलिए, जरा गांव का भूगोल और इतिहास दोनों समझते हैं। प्रसिद्ध जिम कार्बेट नेशनल पार्क (टाइगर प्रोजेक्ट) के बफर जोन में बसे इस गांव की मुसीबत की दास्तां शुरू होती है जून 1991 से। तब तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने एक शासनादेश जारी कर कालागढ़ वन प्रभाग को कालागढ़ टाइगर रिजर्व फारेस्ट घोषित कर दिया। कार्बेट नेशनल पार्क में 56.5 हेक्टेयर में फैले तैड़िया पैनो गांव की आबादी 1991 में करीब 500 थी, जो अब सिमट कर 70-80 तक रह गई है। नव निर्वाचित ग्राम प्रधान विनीता ध्यानी बताती है कि उनके पूूूूर्वज 19 वीं सदी के प्रारंभ में गोरखा आक्रमण के दौरान कुमाऊं से यहां विस्थािपित हुए थे। तब आसपास के कई गांवों में ये लोग बस गए। गांव तक पहुंचने के लिए दुगड्डा-रथुवाढाब-हल्दूखाल-नैनीडांडा मोटर मार्ग तक तो वाहन से पहुंचा जा सकता है, लेकिन यहां से आगे गांव तक घने जंगल के बीच से गुजरते हुए पांच किमी की दूरी पैदल ही नापनी होती है। वह बताती हैं कि दिन हो या रात हमेशा हिंस्र जानवरों का खतरा बना रहता है। ऐसे में कोई खेती भी कैसे करेगा। निकटतम बाजार 20 किलामीटर दूर रथुवाढाब में है। इन हालात में वहां तक जाना भी किसी चुनौती से कम नहीं। प्राथमिक स्वास्थ्य केेंद्र की सुविधा भी वहीं है। गांव में रोशनी के लिए 40 सोलर लाइटें लगी थीं, उनमें से 10-15 भी ठीक नहीं हैं।
ऐसा नहीं है कि गांव के लोग प्रकृति, पारिस्थितिकी (Ecology), पर्यावरण और वन्य जीवों के महत्व को नहीं समझते। यही वजह है कि वे लंबे समय से विस्थापन की मांग कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश सरकार के सम्मुख तो मांग रखी ही गई, अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आने के बाद उत्तराखंड में पांच-पांच मुख्यमंत्रियों को इस बारे में ज्ञापन भी दिए गए। जनवरी 2009 में कार्बेट टाइगर रिजर्व प्रशासन ने रामनगर के पास तराई पश्चिमी वन प्रभाग में ग्रामीणों को भूमि भी दिखाई। गांव वालों ने दक्षिणी जसपुर रेंज के तुमड़िया रिवाइंस-प्रथम में विस्थापित होने पर सहमति जताई। खतो-किताबत जारी है इस उम्मीद में शायद एक दिन उनके बच्चों की बरात में बैंड-बाजा जरूर बजेगा।