Dharali Disaster: Scientists Probe Kheer Ganga Floods, Debris at 4000m
Dharali Kheer Ganga Disaster : देहरादून, 17 अगस्त 2025 : धराली में बरपे कुदरत के कहर के बाद एक ओर जिंदगी को पटरी पर लाने के प्रयास किए जा रहे हैं तो दूसरी ओर वैज्ञानिक आपदा के कारणों का पता लगाने में जुटे हैं। आपदा का कारण बनी खीर गंगा के कैचमेंट एरिये का निरीक्षण कर लौटे वैज्ञानिकों के दल के अनुसार स्थिति भी भी साफ नहीं है कि आपदा क्यों आई। हालांकि धराली में खीर गंगा के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र में 4000 मीटर की ऊंचाई पर वैज्ञानिकों को भारी तबाही के निशान मिले हैं। यह मलबा हाल की आपदा का है या पुराना, कारणों का पता लगाने के लिए विश्लेषण जारी है।
खीर गंगा से निकली इस विनाशकारी आपदा के कारणों का पता लगाने के लिए वैज्ञानिकों के दो अलग-अलग दल धराली पहुँचे थे। इनमें से एक 05 सदस्यीय दल उत्तराखंड भूस्खलन शमन एवं प्रबंधन केंद्र के निदेशक डॉ. शांतनु सरकार के नेतृत्व में था, जबकि दूसरा दल उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (यूकॉस्ट) के वैज्ञानिक डॉ. राजेंद्र सिंह राणा के नेतृत्व में पहुँचा।
डॉ. शांतनु सरकार के अनुसार, खीर गंगा के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र में पहले और दूसरे दिन एरियल सर्वे करने में मौसम ने बाधा डाली। हालाँकि, तीसरे दिन मौसम साथ देने पर धराली और खीर गंगा के ऊपरी क्षेत्रों के साथ-साथ आसपास के अन्य आपदाग्रस्त क्षेत्रों का भी सर्वेक्षण किया गया। ऊपरी क्षेत्रों में भारी मलबे के निशान मिले हैं, हालाँकि इसकी स्पष्टता अभी भी बनी हुई है कि यह मलबा नया है या पुराना।
5000 मीटर और उससे अधिक ऊँचाई पर अभी भी घने बादल छाए हुए हैं, जिससे जलप्रलय के सटीक कारण का पता नहीं चल पाया है। प्रारंभिक तौर पर डॉ. शांतनु सरकार ने भारी वर्षा को आपदा का मुख्य कारण बताया है, जिससे मलबे वाले क्षेत्रों में पानी जमा हुआ और ढलान पर तेज़ी से बहता हुआ नीचे आया। ऊँचाई और ढाल अधिक होने के कारण मलबा और पानी का मिश्रण पूरे वेग के साथ बह गया, जिससे इतनी बड़ी त्रासदी हुई।
उत्तराखंड विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (यूकॉस्ट) के दल ने भी धराली आपदा का विश्लेषण किया है। यूकॉस्ट के वैज्ञानिक डॉ. राजेंद्र सिंह राणा ने बताया कि खीर गंगा के ऊपरी क्षेत्र में बादलों के पार देखना सबसे बड़ी चुनौती थी। फिर भी, ड्रोन के माध्यम से 4000 मीटर की ऊँचाई तक पहुँच बनाई गई और कई चित्र लिए गए हैं। अब इन चित्रों का आपदा से पहले के उपग्रह चित्रों के साथ तुलनात्मक अध्ययन किया जाएगा ताकि आपदा के कारणों को स्पष्ट किया जा सके।