Kolkata Scientists Make Breakthrough in Gold Nanoparticle Research
कोलकाता. 13 सितंबर 2025 : कोलकाता के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी खोज की है जो भविष्य में दवाओं को शरीर में सही तरीके से पहुंचाने, बीमारियों को जल्दी पहचानने और मेडिकल जांच के उपकरणों को और बेहतर बनाने में मदद कर सकती है।
यह खोज सोने के बेहद बारीक कणों (नैनोकण) पर आधारित है। ये कण इतने छोटे होते हैं कि इन्हें सिर्फ माइक्रोस्कोप से देखा जा सकता है, लेकिन ये प्रकाश के साथ कुछ ऐसा कमाल करते हैं जो सामान्य धातुएं नहीं कर सकतीं। यही कारण है कि इनका इस्तेमाल बायोसेंसर और मेडिकल इमेजिंग में होता है। लेकिन इन सोने के नैनोकणों की एक चुनौती ये है कि ये कभी-कभी अपने आप एक साथ चिपकने लगते हैं और बड़ी-बड़ी गांठों जैसी संरचनाएं बना लेते हैं। इससे उनके काम करने की क्षमता बिगड़ जाती है। वैज्ञानिकों के लिए यह एक बड़ी समस्या रही है – कि कैसे इस ‘अचानक चिपकने’ की प्रक्रिया को रोका जाए। अब एस. एन. बोस राष्ट्रीय विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने इसका हल ढूंढ लिया है। प्रोफेसर माणिक प्रधान और उनकी टीम ने दो आम रसायनों का इस्तेमाल करके इस प्रक्रिया को समझा और नियंत्रित किया। यह शोध अंतरराष्ट्रीय साइंस जर्नल ‘एनालिटिकल केमिस्ट्री’ में प्रकाशित हुआ है।
ग्वानिडीन हाइड्रोक्लोराइड (GdnHCl) – एक तरह का नमक जो प्रोटीन को तोड़ने के लिए प्रयोग होता है।
. एल-ट्रिप्टोफैन (L-Trp) – एक अमीनो एसिड जो हमारे खाने में मौजूद होता है और नींद व शांति से जुड़ा होता है।
क्या हुआ प्रयोग में?
जब GdnHCl डाला गया, तो सोने के कण तेजी से एक-दूसरे से चिपक गए। लेकिन जैसे ही L-Trp को इसमें मिलाया गया, तो यह चिपकाव धीमा हो गया और नैनोकणों ने एक खुला, जाल जैसा ढांचा बना लिया – जैसे कि वो पास आना तो चाहते हैं, लेकिन L-Trp उन्हें पूरी तरह से जुड़ने नहीं देता। वैज्ञानिकों ने इसे “असंतुष्ट एकत्रीकरण” (frustrated aggregation) कहा।
इस प्रयोग को देखने के लिए उन्होंने एक बेहद आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया – जिसका नाम है Evanescent Wave Cavity Ringdown Spectroscopy (EW-CRDS)। यह तकनीक बेहद संवेदनशील है और इससे सतह पर चल रही बेहद महीन गतिविधियों को भी देखा जा सकता है।
क्यों है यह खोज खास?
इससे यह समझने में मदद मिलेगी कि कैसे नैनोकणों का व्यवहार नियंत्रित किया जा सकता है।
इससे ऐसे सेंसर बनाए जा सकते हैं जो ज्यादा सटीक हों।
दवाओं को शरीर में सही तरीके से पहुंचाने वाली नई टेक्नोलॉजी विकसित की जा सकती है।
बायोमेडिकल रिसर्च और नैनोविज्ञान में नई दिशा मिलेगी।