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Reading: नवरात्र : हाथी पर सवार होकर आ रही हैं मां, भक्तों के कंधों पर करेंगी प्रस्थान 
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Himalaya Ki Awaj > Blog > उत्तराखंड > नवरात्र : हाथी पर सवार होकर आ रही हैं मां, भक्तों के कंधों पर करेंगी प्रस्थान 
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नवरात्र : हाथी पर सवार होकर आ रही हैं मां, भक्तों के कंधों पर करेंगी प्रस्थान 

Web Editor
Last updated: 2025/09/20 at 4:43 PM
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4 Min Read
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Navratri 2025: Goddess Durga Arrives on Elephant, Sign of Prosperity and Peace

नवरात्र में रविवार और सोमवार को हाथी पर सवार होकर धरती पर आती हैं मां दुर्गा

सकारात्मक ऊर्जा और मंगलकारी फल का प्रतीक है हाथी पर मां का आगमन

देहरादून, 20 सितंबर 2025 : इस नवरात्र मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आ रही हैं। देवी पुराण के अनुसार, मां हर वर्ष अलग-अलग वाहनों पर सवार होकर धरती पर आती हैं। नवरात्र में अगर मां के आगमन का दिन रविवार और सोमवार पड़ता है तो वह हाथी को अपना वाहन चुनती हैं। इस बार भी नवरात्र की शुरुआत 22 सितंबर को सोमवार से हो रही है। देवराज इंद्र का वाहन ऐरावत भी हाथी ही है और गणपति का स्वरूप भी हाथीमुख, जो बुद्धि और समृद्धि का द्योतक है। यही कारण है कि जब मां दुर्गा हाथी की सवारी करती हैं, तो यह सकारात्मक ऊर्जा और मंगलकारी फल का प्रतीक बन जाता है।

भक्तों के कंधे पर विराजमान होकर प्रस्थान करेंगी मां

इस बार मां दुर्गा का प्रस्थान गुरुवार दो अक्टूबर को मनुष्य के कंधे पर होगा। मान्यता है कि मां का ऐसा प्रस्थान भी बेहद शुभ होता है। यह इशारा है कि समाज में शांति का वातावरण रहेगा, व्यापार में प्रगति होगी और पड़ोसी देशों के साथ संबंधों में सुधार होगा।

 

दुर्गा पूजा की तिथि एवं मुहूर्त
28 सितंबर, रविवार : महाषष्ठी
29 सितंबर, सोमवार : महासप्तमी
30 सितंबर, मंगलवार : महाअष्टमी
01 अक्टूबर, बुधवार : महानवमी
02 अक्टूबर, गुरुवार : विजयादशमी/दशहरा

दुर्गा पूजा की विधिपूर्वक शुरुआत बोधन के साथ षष्ठी तिथि से होती है। इस दिन को महालय कहा जाता है। षष्ठी तिथि पर बिल्व निमंत्रण पूजा, कल्पारंभ, अकाल बोधन, आमंत्रण और अधिवास का विधान है।

 

पूजा का प्रथम दिन होता है महासप्तमी और इस दिन नवपत्रिका पूजा को विधि-विधान से करने की परंपरा है। इसके तहत जिन नौ पत्तों केला, कचौ/कच्चू, हल्दी, अनार, अशोक, बेल, धान, अमलतास और जौ का प्रयोग किया जाता हैं उनमें हर पत्ता देवी के नौ स्वरूपों का प्रतिनिधित्व करता हैं।

 

पूजा का द्वितीय दिन महाष्टमी के रूप में मनाया जाता है, जिसे महा दुर्गाष्टमी भी कहा जाता हैं। महाष्टमी पर मां की पूजा का विधान महासप्तमी के समान ही होता है, लेकिन इस दिन प्राण-प्रतिष्ठा नहीं की जाती है। महाष्टमी तिथि पर महास्नान के बाद देवी दुर्गा की षोडशोपचार पूजा की जाती है और मिट्टी से बने नौ कलश स्थापित किये जाते हैं।

 

महानवमी तिथि दुर्गा पूजा उत्सव का तीसरा एवं अंतिम दिन है। इस दिन का आरंभ भी महास्नान तथा षोडशोपचार पूजन के साथ होता है। महानवमी के दिन देवी दुर्गा की उपासना महिषासुर मर्दिनी के रूप में की जाती है। मान्यता है कि नवमी तिथि पर देवी दुर्गा ने महिषासुर का संहार किया था।

 

दशमी तिथि को विजयदशमी के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन देवी दुर्गा की प्रतिमाओं को विसर्जित करने के बाद भक्तगण उन्हें सिन्दूर खेला के साथ श्रद्धाभाव से विदाई देते हैं।
कब, किस वाहन पर सवार होकर आती हैं मां दुर्गा
सोमवार या रविवार – हाथी (सुख-समृद्धि और अच्छी बारिश)
शनिवार या मंगलवार – घोड़े (युद्ध और राजनीतिक उथल-पुथल
गुरुवार या शुक्रवार – पालकी (सुख, शांति और समृद्धि)
बुधवार – नाव (सभी मनोकामनाओं की पूर्ति)
हाथी की सवारी का महत्व

कृषि, व्यापार और पारिवारिक जीवन में सकारात्मकता

अच्छी फसल और भरपूर वर्षा से किसानों को लाभ

व्यापार और कारोबार में तेजी

आर्थिक दृष्टि से समय लाभकारी

लोगों के जीवन में स्थायित्व और उन्नति

परिवारों में सुख-शांति और आपसी प्रेम का वातावरण

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TAGGED: and peace. Learn the auspicious dates, and the spiritual significance of her arrival and departure., Goddess Durga arrives on an elephant, In Navratri 2025, rainfall, rituals, symbolizing prosperity
Web Editor September 20, 2025
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