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Himalaya Ki Awaj > Blog > उत्तराखंड > Dehradun Cloudburst: उस रात जब कार्लीगाड में काल ने दी दस्‍तक
उत्तराखंड

Dehradun Cloudburst: उस रात जब कार्लीगाड में काल ने दी दस्‍तक

Web Editor
Last updated: 2025/09/23 at 6:31 PM
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4 Min Read
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रेस्‍तरां संचालक मनीष अजवान

देहरादून, 23 सितंबर 2025 : ‘आज से ठीक एक सप्‍ताह पहले मंगल की वो सुबह मानो अमंगल लेकर आई। कार्लीगाड के कहर से चारों ओर मचा हाहाकर तो अब थम गया है, लेकिन तबाही की दास्‍तां हर कहीं बिखरी हुई है।’ मनीष के मुंह से निकले इन शब्‍दों की सिहरन उसके चेहरे पर साफ झलक रही थी। बोला, वो सामने देखिए कार्लीगाड नदी के पार पहाडों की ढलान से नीचे उतर रहा यह खाला कभी पतली संकरी गूलनुमा आकृति हुआ करती थी। इसी खाले में उत्‍पन्‍न हुई सुनामी। लगा कि उस रात लहरों पर साक्षात यमराज सवार थे। जो कुछ भी उसकी राह में आया, होटल, रिजोर्ट, घर और रेस्‍तरां, लहरें सब कुछ लील गईं।

देहरादून में सैलानियों की प्रसिद्ध सैरगाह सहस्रधारा से चार किलोमीटर दूर है कार्लीगाड। यही वह स्‍थान है जहां 15 सितंबर की रात बादल फटने से जलप्रलय आई। हालांकि उस दिन तो कार्लीगाड पहुंचना एवरेस्‍ट फतेह करने जैसा था, लेकिन इतने समय बाद भी वहां जाना आसान नहीं है। हालांकि सडक को दोपहिया और छोटे वाहनों के लिए हिचकोले खाते हुए आने-जाने लायक तो कर ही दिया गया है। खैर, इस भूगोल के बाद चलिए,  बताते हैं कि मनीष कौन हैं। लगभग 24-25 वर्ष का यह यवुक कार्लीगाड में मुख्‍य सडक पर एक रेस्‍तरां का संचालक है। मंझाडा का रहने वाला मनीष अजवान उस शाम अपने रेस्‍तरां में ही मौजूद था। तब से आज ही उसने रेस्‍तरां खोला तो मुलाकात हुई। बातचीत चली तो वह बोला, उस रात का भयावह मंज़र आज भी दिल दहला देता है। उसी के शब्‍दों में , मैंने अपनी आँखों से जो देखा, वो एक ऐसी दास्तान है जो सिर्फ़ महसूस की जा सकती है।उस दिन शाम को शुरू हुई बारिश रात 7:30 बजते ही एकाएक तेज हो गई। रात 8:30 बजे मैं अपना काम ख़त्म करके घर की ओर चला, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था। एक जेसीबी पर सवार होकर मैं घर के करीब तक तो पहुँचा, लेकिन आगे  रास्ता बंद था। ऐसे में एक दोस्त के घर शरण लेनी पड़ी। रात के करीब साढ़े दस बजे, मिट्टी की अजीब सी गंध हवा में घुलने लगी और नदी की दहाड़ इतनी भयानक थी कि दिल दहलने लगा। मैंने फोन कर अपनी मां, भाई, भाभी और भतीजों को घर खाली करने के लिए कहा।

गांव के पचास से ज़्यादा परिवारों के साथ हम भी बिना सोचे समझे जंगल की ओर भागे। ऊपर से आसमान फट रहा था और नीचे ज़मीन कांप रही थी। उस घनघोर बारिश में हम सब सांस रोक कर कार्लीगाड का कहर देख  रहे थे।  रात के एक से तीन बजे के बीच बारिश थोड़ी थमी, लेकिन भोर से पहले ही उसने फिर से गति पकड़ ली। पौ फटने के साथ जो मंज़र सामने आया, वो होश उडाने वाला था। सामने वाली पहाड़ी से कार्लीगाड नदी में समा रहे पतला और संकरे खाले में मंगलवार तडके के लहरें विकराल हो गई। भयानक गर्जना के साथ लगा कि मानो साक्षात यमराज इन पर सवार हैं। जल प्रलय ने कई रिसॉर्ट्स और घरों को देखते ही देखते अपने आगोश में समेट लिया। नदी के इस पार हों या उस पार सब की रात दहशत में ही गुजरी। सुबह के हालात ऐसे थे कि ऊपर वाले ने जान तो बचा ली, लेकिन जिंदगी छीन ली।

 

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