लंदन : आधुनिकता की दौड में रूढिवादी सोच से मुक्त होने का दावा कर रहे समाज मानो अब दुविधा के दोराहे पर खडे हैं। समझ नहीं आ रहा कि क्या करें ? हालात ऐसे बन गए हैं कि मंशा तो ठीक है , लेकिन लोगों को मुंह कैसेे दिखाएं, कैसे समझाएं ? आइए बात करें विलायत की, जिसने दुनिया को माडर्न बनना सिखाया, जहां औदयोगिक क्रांति ने गति पकडी, वहीं यह उलझन सुलझ नहीं पा रही है। इंग्लैड के 17 स्कूलों में यूनीफार्म के तौर पर स्कर्ट पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। अब छात्राओं को लडकों के समान पैंट पहनकर स्कूल आना होगा। तर्क दिया जा रहा है कि इससे लैंगिक समानता (जेंडर इक्वलिटी) का भाव बढेगा। दूसरी ओर बच्चों को यह फैसला फूटी आंख नहीं सुहा रहा और न ही उनके माता पिता को। ये लोग इस निर्णय का कडा विरोध कर रहे हैं। उन्होंने इसे “भयावह और अपमानजनक” निर्णय करार दिया। उनका मानना है कि स्कर्ट छात्राओं की लैंगिक पहचान से जुडी है और यह पहचान उनसे कैसे छीनी जा सकती है।
इंग्लैंड के अखबार मिरर में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक नॉर्दर्न एजुकेशनल ट्रस्ट के 17 माध्यमिक विद्यालयों के लिए यह निर्णय लिया गया है। हालांकि यह लागू अगलेे साल सितंबर से होना है, लेकिन अभिभावकों को पिछले माह पत्र के जरिये इसकी जानकारी दे दी गई। पत्र में सभी छात्राओं से अपेक्षा की गई है कि वे सिलवाया हुआ स्कूल ट्राउजर पहनें। यह निर्णय ट्रस्ट के सभी हितधारकों से सावधानीपूर्वक विचार-विमर्श और फीडबैक के बाद लिया गया है। यूनिफ़ॉर्म में बदलाव को लेकर एक अभिभावक ने बताया “स्कूलों की एक पूरी श्रृंखला ने बिना किसी परामर्श के स्कर्ट पर प्रतिबंध लगा दिया है, जो कि कुछ नया और भयावह है। मेरी बेटी और उसकी कई सहेलियाँ इस बात से परेशान हैं।
एक अन्श् अभिभावक ने कहा कि “कई लड़कियाँ अपनी लैंगिक पहचान को व्यक्त करने के लिए स्कर्ट पहनना चुनती हैं। यह बहुत ही अपमानजनक है कि ट्रस्ट इसे कमज़ोरी और हीनता के रूप में देखता है और लड़कियों को सिर्फ़ दोषपूर्ण लड़के मानता है। लड़कियों को हमेशा नीची नज़र से देखा जाता है। इसमें कुछ भी खुला, आधुनिक और समावेशी नहीं है। ”