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सरकार की चेतावनी, दवा निर्माण में गुणवत्ता से समझौता बर्दाश्त नहीं

Web Editor
Last updated: 2025/06/30 at 1:41 PM
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मुख्यमंत्री के निर्देश पर हुई दवा निर्माताओं साथ अहम बैठक, अधोमानक दवा और अवैध गतिविधियों पर कड़ा रुख

देहरादून  :   उत्तराखण्ड को भारत का फार्मा हब बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए, आज खाद्य संरक्षा एवं औषधि प्रशासन मुख्यालय, देहरादून में एक अहम समीक्षा बैठक आयोजित की गई। यह बैठक मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी और स्वास्थ्य मंत्री डॉ. धन सिंह रावत के स्पष्ट निर्देशों के क्रम में बुलाई गई थी। बैठक की अध्यक्षता अपर आयुक्त, खाद्य संरक्षा एवं औषधि प्रशासन तथा राज्य औषधि नियंत्रक श्री ताजबर सिंह जग्गी ने की। बैठक में प्रदेश की 30 से अधिक दवा निर्माता इकाइयों के प्रतिनिधि, प्रबंध निदेशक, औषधि विनिर्माण एसोसिएशन के पदाधिकारीगण, और विभागीय अधिकारियों ने भाग लिया। बैठक का मुख्य उद्देश्य था – राज्य में हाल ही में सामने आए अधोमानक औषधियों के मामलों की समीक्षा, औषधि गुणवत्ता की स्थिति का विश्लेषण, और औद्योगिक प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए उठाए जा सकने वाले ठोस कदमों पर चर्चा।

निर्माताओं ने जताई चिंता–बिना जांच ड्रग अलर्ट से उद्योग की छवि पर असर
समीक्षा बैठक में उपस्थित दवा निर्माताओं ने सी.डी.एस.सी.ओ. (CDSCO) द्वारा जारी किए जा रहे ड्रग अलर्ट को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की। उनका कहना था कि कई बार बिना जांच की प्रक्रिया पूरी किए, ड्रग अलर्ट सार्वजनिक पोर्टल पर डाल दिए जाते हैं, जिससे फर्म की साख और राज्य की छवि दोनों को नुकसान पहुंचता है। एक उदाहरण के तौर पर कूपर फार्मा के Buprenorphine Injection का ज़िक्र किया गया, जिसे अधोमानक और स्प्यूरियस घोषित किया गया था। बाद में जांच में पाया गया कि वह दवा उत्तराखण्ड की फर्म द्वारा बनाई ही नहीं गई थी, बल्कि बिहार में अवैध रूप से तैयार की गई थी। ऐसे मामलों में उत्तराखण्ड की कंपनियों को बिना किसी दोष के दोषी मान लिया जाता है, जो उद्योग और निवेश दोनों के लिए नकारात्मक संकेत देता है। कंपनियों ने यह भी कहा कि जब कोई नमूना अधोमानक पाया जाता है, तब औषधि अधिनियम की धारा 18(A) के अंतर्गत प्रारंभिक जांच और नमूने की सत्यता की पुष्टि अनिवार्य है। इसके बाद धारा 25(3) के तहत निर्माता को उस रिपोर्ट को चैलेंज करने का अधिकार होता है। परंतु जब तक रिपोर्ट और सैम्पल समय पर नहीं दिए जाते, तब तक यह अधिकार केवल कागज़ों तक ही सीमित रह जाता है।

बैठक में राज्य औषधि नियंत्रक ताजबर सिंह जग्गी ने सभी दवा निर्माता कंपनियों को दो टूक कहा कि सरकार उद्योग के साथ है, लेकिन औषधियों की गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड की दवा इकाइयों की छवि पूरे देश में बहुत सकारात्मक है और इसे बनाए रखना सभी की जिम्मेदारी है। उन्होंने सभी प्रतिनिधियों को अपने-अपने प्लांट्स में GMP (Good Manufacturing Practices) का कड़ाई से पालन करने, प्रोडक्शन की हर स्टेज पर रिकॉर्ड रखने और गुणवत्ता सुनिश्चित करने को कहा।

फार्मा सेक्टर को मिलेगा और मज़बूत समर्थन
बैठक में मौजूद दवा निर्माताओं ने मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी और स्वास्थ्य मंत्री डॉ. धन सिंह रावत का आभार प्रकट किया और कहा कि धामी सरकार की पारदर्शी और उद्योग समर्थक नीतियों के कारण उत्तराखण्ड आज देशभर में निवेशकों की पसंद बन रहा है। कंपनियों ने भरोसा जताया कि अगर यही रुख बरकरार रहा तो आने वाले वर्षों में उत्तराखण्ड भारत का सबसे बड़ा फार्मा क्लस्टर बन सकता है।

अधोमानक दवा और अवैध गतिविधियों पर कड़ा रुख
समीक्षा बैठक में यह तय किया गया कि जो लोग अधोमानक दवाएं बनाकर राज्य की प्रतिष्ठा खराब कर रहे हैं, उन पर कानूनी कार्रवाई में कोई ढील नहीं बरती जाएगी। विभाग द्वारा ऐसे मामलों की जांच की जा रही है, और दोषी पाए जाने पर एफआईआर दर्ज कर सख्त कार्रवाई की जाएगी।

विश्व स्तरीय गुणवत्ता पर पूरा फोकस
राज्य के स्वास्थ्य सचिव एवं आयुक्त खाद्य संरक्षा व औषधि प्रशासन, डॉ. आर. राजेश कुमार ने कहा हमारा दृढ़ लक्ष्य है कि आने वाले कुछ वर्षों में उत्तराखंड फार्मा हब के रूप में उभरे। इस दिशा में हम न केवल मौजूदा औषधि निर्माण इकाइयों के विस्तार पर काम कर रहे हैं, बल्कि नए निवेश, उद्योगों के लिए सुविधाजनक नीतियाँ और उच्च गुणवत्ता नियंत्रण तंत्र तैयार कर रहे हैं। डॉ. राजेश कुमार ने बताया कि उत्तराखंड में फिलहाल लगभग 285 फार्मा यूनिट्स सक्रिय हैं, जिसमें से 242 यूनिट्स डब्लूएचओ से सर्टिफाइड हैं। देश में उत्पादित कुल दवाओं का लगभग 20% हिस्सा उत्पादन करती हैं और ये फार्मा कंपनियां देश-विदेश को महत्वपूर्ण मात्रा में निर्यात भी कर रही हैं । उन्होंने आगे कहा कि हाल ही में देहरादून में राज्य सरकार एवं केंद्र सरकार की सहयोग से स्थापित एक उच्च-तकनीकी प्रयोगशाला का उद्घाटन किया गया, जिसमें दवाओं के साथ-साथ मेडिकल उपकरण और कॉस्मेटिक सैंपल्स की भी परीक्षण की व्यवस्था की गई है । इस प्रयोगशाला को शीघ्र ही NABL मान्यता भी प्राप्त होगी, जिससे यहां के रिपोर्ट्स का राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्य मानक बन जाएगा। डॉ. राजेश कुमार ने स्पष्ट किया कि राज्य में जीरो टॉलरेंस नीति के तहत अधोमानक औषधियों के खिलाफ कार्रवाई जारी रहेगी।

उत्तराखण्ड गुणवत्तापूर्ण दवाओं का उभरता ग्लोबल सेंटर
वर्तमान में उत्तराखण्ड की औषधि इकाइयों से भारत के 15 से अधिक राज्यों और 20+ देशों को दवाओं की आपूर्ति की जा रही है। राज्य में स्थित फार्मा कंपनियां WHO-GMP, ISO, और अन्य अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप कार्य कर रही हैं।धामी सरकार का ध्यान सिर्फ कारोबार को बढ़ावा देने पर ही नहीं, बल्कि यह भी सुनिश्चित करने पर है कि यहां की दवाएं विश्व स्तरीय गुणवत्ता के मानकों पर खरी उतरें।

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