Dharali Flood: The Heartbreaking Search for Missing Loved Ones

एक माह बाद : धराली में धूमिल होती उम्मीदेंं और अंतहीन इंतजार
उत्तरकाशी, 6 सितंबर 2025 : श्रीकंठ पर्वत से उतरकर धराली तक पहुंचने वाली खीर गंगा का उफान अब शांत है और श्मशान जैसे सन्नाटे के बीच धराली की धड़कनें खामोश। बीच-बीच में इस सन्नाटे को तोडती है पुलिस, एसडीआरएफ और एनडीआरएफ के जवानों की कदमताल। जो आज एक माह बाद भी शिददत से लापता लोगों की तलाश में जुटे हैं। हां…….इस अजीब से सन्नाटे में एक और चेहरा ध्यान खींचता है और यह है कोमल नेगी। अभी परिणय बंधन में बंधे एक साल ही हुआ था कि कुदरत ने उसे इस कठोर धरातल पर ला पटका। हर रोज सूनी आंखों से मलबे के ढेर में वह अपने पति शुभम को तलाशने पहुंच जाती है। कोमल ही क्यों……बस किरदार बदल जाते हैं और कहानी कुछ ऐसी ही रह जाती है।
कोमल की यह कठोर कहानी किसी भी कलेजे को चीर सकती है। पांच अगस्त की दोपहर उस अंधकार से पहले यह हंसता खेलता परिवार अपनी जिंदगी को बेहतर बनाने की जददोजहद में जुटा था। पति शुभम नेगी धराली में एक होटल चलाते थे। शुभम और उनके दोनों भाई होटल व्यवसायी हैं । कोमल कुछ दिन के लिए उत्तरकाशी गई थी और इस बीच पांच अगस्त को धराली में आई सुनामी उसका सबकुछ लील गई। अब शुभम की खोज में कोमल हर रोज उस होटल के मलबे को निहारती नजर आ जाती है।
मुकेश और विचिता की दास्तां भी दिल दहलाने वाली है। धराली के सबसे खूबसूरत होटलों में से एक हिल स्टार के मालिक मुकेश और उनकी पत्नी अपने एक बेटे के साथ वहीं थे। जब सैलाब आया और सबकुछ निगल गया। उनका एक बेटा अपनी नानी के पास उत्तरकाशी में है। कल्प केदार मंदिर के पुजारी अमित नेगी का भाई सुमित भी लापता है। वह भी उसकी तलाश कर रहे हैं।
इन कहानियों की एक लंबी फेहरिस्त है। मलबे से अटे धराली में लापता लोगों की तलाश चुनौती बन चुकी है। दरअसल, मलबा हटाने के लिए हैवी मशीनरी की जरूरत है, लेकिन सबसे बडा सवाल यह है कि मशीनरी यहां तक पहुंचे कैसे ? आपदा में तबाह हो चुके धराली को जोडने वाला गंगोत्री हाईवे को बहाल कर पाना अभी दूर की कौडी लग रहा है। कुदरत की चुनौतियों के आगे तकनीक भी बौनी साबित हो रही है। एक माह बाद भी धराली तक पहुंचने की राह सुगम नहीं हो पायी। गंगोत्री हाईवे को दुरुस्त करने की सारी कवायद नाकाफी साबित हो रही है। सीमा सडक संगठन (बीआरओ ) के इंजीनियर से लेकर विशेषज्ञों की टीम कुदरत की चुनौती को स्वीकार कर मोर्चे पर डटी है।
नदी का मलबा धराली में चारों ओर फैला है। बीच-बीच में दबे हुए घरों की छतें ऐसी लग रही हैं मानो कोई बेसमेंट से झांक रहा हो। अभी तक 63 जिंदगियों का कोई सुराग नहीं मिला है। हर गुजरते दिन के साथ उनके लौटने की उम्मीद धूमिल होती जा रही है। अपनों की तलाश में बेसब्र लोगों की चिंता यही है कि और कुछ नहीं, उनके अपनों को चिता तो नसीब हो जाए। राहत और बचाव टीमों ने शुरुआती दिनों में अकल्पनीय चुनौतियों का सामना किया। NDRF और SDRF की टीमें जान जोखिम में डालकर मलबे के नीचे दबे लोगों को तलाश रही थीं। ड्रोन कैमरों की मदद से उन इलाकों की निगरानी की जा रही थी जहाँ पहुँचना असंभव था। लेकिन, विषम भूगोल में भयावह आपदा के आगे हर कोई बेबस है।
धराली में घर-बार, होटल, दुकान, बाग-बगीचे सब कुछ तबाह हो चुका है। डेढ सौ परिवारों वाले कस्बे में जो जिंदा बच गए, उन्हें पुराने धराली गांव में शरण मिली है। खाने-पीने की व्यवस्था सरकार की ओर से की गई है, लेकिन आगे क्या होगा यह चुनौती मुंह बाये खडी है।सरकार ने पुनर्वास और पुनर्निर्माण के लिए योजनाएँ बनाई हैं, लेकिन इसमें समय लगेगा।
