उत्तराखंड में बिजली के दामों में वृदि कर एक बार िफर उपभोक्ता पर बोझ डाला गया है। करीब दस फीीसद की वृदि से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि अपने घाटे को पूरा करने के लिए उर्जा निगम के पास उपभोक्ता की जेब काटने के अलावा अन्य कोई चारा नहीं बचा है। क्या बिजली निगमों ने अपने गिरबां में झांंकने की कोशिश की है। गैर योजनागत मद मेे कितना खर्च हो रहा है। इसके अलावा क्या विभागोंं ने अपने खर्चों पर अंकुश लगाने का प्रयास किया है। लाइन लॉस एक बडी समस्या बना हुआ है। इससेे निपटने के लिए अभी तक कोई ठोस इंतजाम नहीं किए जा सके हैं। उर्जा प्रदेेश का रुतबा रखने वाला उत्तराखंड अपनी जरूरत की बिजली भी पैदा नहीं कर पा रहा है। पावर हाउसों को अपग्रेड करने के लिए क्या किया गया। इस बारे में शायद ही कोई कुछ बता सके। बिजली चाेेरी भी एक बडी चुनौती के रूप में सामने है। तमाम प्रयास के बाद भी इस पर नकेल नही लग पा रही है। यदा कदा विभाग अभियान जरूर चलाता है, लेकिन ये भ्ाी खानापूरी जैसे ही नजर आते हैं। उम्मीद की जानी चाहिए की सरकार बिजली निगमों के मामले में हस्तक्षेप कर समस्या के समााधान के लिए प्रयाास करेगी। उपभोक्ता पर बोझ कम हो, यह सरकार की भी जिम्मेदारी है।