देहरादून : क्या किसी ऑडिट की आपत्ति से विशेष श्रेणी के विद्यालयों में अनुसूचित जाति के छात्रों का प्रवेश प्रतिबंधित किया जा सकता है। यह बात अटपटी इसलिए हो जाती है, क्योंकि उन्हीं विद्यालयों में अनुसूचित जनजाति के छात्रों को प्रवेश देने की मनाही नहीं है। फिर चाहे छात्र सामान्य जाति के ही क्यों न हों। बात हो रही है चकराता और इससे जुड़े पूरे जौनसार बावर क्षेत्र की। यह पूरा क्षेत्र अनुसूचित जनजाति क्षेत्र घोषित है। ऐसे में आश्रम पद्वति के विद्यालयों में सामान्य जाति के छात्रों को भी प्रवेश मिल जाता है। हालांकि, समाज कल्याण विभाग के नए आदेश से अनुसूचित जाति के छात्रों का प्रवेश जरूर बाधित कर दिया गया है। इस मामले में राष्ट्रवादी रीजनल पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवप्रसाद सेमवाल ने आंदोलन की चेतावनी दी है।
पत्रकारों से रूबरू पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवप्रसाद सेमवाल ने कहा कि समाज कल्याण विभाग देहरादून ने महालेखाकार की आडिट आपत्ति रिपोर्ट का हवाला देकर आश्रम पद्धति विद्यालय में अनुसूचित जाति के बच्चों को प्रवेश दिए जाने से इन्कार कर दिया है। उन्होंने जनजाति क्षेत्र में व खुले आश्रम पद्धति आवासीय विद्यालयों में अनुसूचित जाति के बच्चों के प्रवेश पर प्रतिबंध को तुगलकी फरमान बताते हुए कहा कि इससे अनुसूचित जाति के नौनिहाल शिक्षा अधिकार से वंचित हो रहे हैं।
साथ ही इसको लेकर अभिभावकों में भी भारी आक्रोश व्याप्त है। राष्ट्रीय अध्यक्ष सेमवाल ने अफसोस जताया कि आर्थिक रूप से कमजोर छात्र प्रवेश को दर-दर भटक रहे हैं। आर्थिक एवं सामाजिक रूप से कमजोर वर्गों के बच्चों के शैक्षिक भविष्य को तराशने के लिए ही आश्रम पद्धति विद्यालयों की स्थापना की गई थी। एक ओर सरकार समाज के शोषित व वंचित वर्गों की शिक्षा के लिए बड़े-बड़े दावे करती है, जबकि दूसरी ओर जनजाति क्षेत्र जौनसार बावर में खोले गए आश्रम पद्धति के आवासीय विद्यालयों में अनुसूचित जाति के बच्चों के प्रवेश पर प्रतिबंध का शासनादेश जारी कर उन्हें शिक्षा के अधिकार से वंचित किया जा रहा है।
राष्ट्रवादी रीजनल पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष सेमवाल ने उम्मीद जताई कि सरकार मामले का संज्ञान लेकर शीघ्र समाधान कर बच्चों को उनके शिक्षा के अधिकार को बहाल करेगी। ऐसा न होने पर उन्होंने आदोलन छेड़ने की चेतावनी दी है। साथ ही कहा है कि ऑडिट जैसी आपत्तियां वित्तीय प्रबंधन के लिहाज से की जाती हैं। लेकिन, इन्हें वंचित वर्ग के बच्चों का हक मारने के लिए प्रयोग में लाया जाए तो यह अन्याय है। शासन को इस दिशा में ऑडिट आपत्ति के समाधान के लिए वित्तीय प्रबंधन की राह निकालनी चाहिए।