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उत्तराखंड

हाईकोर्ट की शिफ्टिंग : भूमि की तलाश के लिए एक माह का समय

Web Editor
Last updated: 2024/05/11 at 3:11 AM
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4 Min Read
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नैनीताल : नैनीताल हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस ऋतु बाहरी और जस्टिस राकेश थपलियाल की कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट की शिफ्टिंग के लिए हल्द्वानी के गौलापार में 26 हेक्टेयर भूमि की पेशकश की गई है। इस भूमि का 75 प्रतिशत भाग पेड़ों से भरा हुआ है। इसलिए कोर्ट नया हाई कोर्ट बनाने के लिए किसी भी पेड़ को उखाड़ना नहीं चाहता है। कोर्ट ने कहा कि ‘हम उस भूमि का उपयोग नहीं कर रहे हैं।’ हालांकि, कोर्ट ने राज्य गठन से लेकर अब तक की बदली और बढ़ती परिस्थितियों में हाई कोर्ट की शिफ्टिंग को जरूरी बताया। कोर्ट ने सुनवाई में ऑनलाइन उपस्थित हुईं उत्तराखंड की मुख्य सचिव राधा रतूड़ी और मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव आरके सुधांशु से कहा कि शिफ्टिंग के लिए उपयुक्त भूमि का पता लगाया जाए। इस काम के लिए चीफ जस्टिस की पीठ ने 01 माह का समय देते हुए कहा कि अधिकारी 07 जून 2024 तक अपनी इस न्यायालय को सौंपेंगे।

03 से 11 हुई संख्या, 50 वर्षों में 80 न्यायाधीशों के लिए होगी भूमि की जरूरत
चीफ जस्टिस ऋतु बाहरी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने हाई कोर्ट को नैनीताल से शिफ्ट किए जाने को लेकर कहा कि जब उत्तराखंड का गठन हुआ, तब उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या केवल 03 थी। 20 वर्षों के भीतर संख्या 11 हो गई। अगले 50 वर्षों में इस संख्या के कम से कम 08 गुना होने की संभावना है। इसलिए अगले 50 वर्षों के भीतर ‘हमें 80 न्यायधीशों के लिए भूमि की आवश्यकता है।’ कोर्ट ने कहा कि इस राज्य को 09 नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश से अलग करके बनाया गया, इसकी राजधानी अस्थाई रूप से देहरादून, जबकि उच्च न्यायालय की स्थापना नैनीताल में की गई।

नैनीताल महंगा शहर, युवा अधिवक्ताओं के सामने घर की समस्या
नैनीताल शहर एक प्रसिद्द पर्यटन स्थल भी है। यहां देश के विभिन्न हिस्सों और विदेश से भी पर्यटक आते हैं। इन सबके बीच नैनीताल में यातायात और भीड़ शहर की सबसे बड़ी समस्या में से एक है। साथ ही जब से उच्च न्यायालय की स्थापना हुई, तब से आज तक हर वर्ष अधिवक्ताओं की संख्या में वृद्धि हो रही है। 1200 से अधिक अधिवक्ता ऐसे हैं, जो नियमित रूप से यहां प्रैक्टिस कर रहे हैं। इनमें से 400 युवा अधिवक्ता हैं, जो आवासीय घरों की कमी का सामना कर रहे हैं। जो घर उपलब्ध हैं, वह बहुत महंगे हैं। पर्यटन सीजन के चरम पर होने के दौरान मकान मालिक अधिवक्ताओं को घर खाली करने के लिए मजबूर करते हैं। ताकि वह अपने घरों का प्रयोग होम स्टे के रूप में कर सकें।

सुलभ और सस्ते न्याय में बाधक है मौजूदा परिस्थिति
इसके अलावा पर्यटक स्थल होने के कारण यहां रहने का खर्चा भी बहुत अधिक है। राज्य में 13 जिले हैं और उनमें से अधिकतर पहाड़ी हैं। ऐसे कई दूरदराज के स्थान हैं, जहां से गरीब वादकारियों को अपने मामले दायर करने के लिए नैनीताल आना पड़ता है। जिन्हें नैनीताल पहुंचने में ही 02-03 दिन का समय लग जाता है। इसके अलावा गरीब वादकारी अपनी नैनीताल यात्रा का खर्च वहन नहीं कर सकते, यहां तक ​​कि कुछ समय के लिए वकील की फीस भी वहन नहीं कर सकते। निश्चित रूप से अदालतें इसी के लिए हैं। वादकारियों को सरल एवं सुलभ न्याय मिले, इसलिए उनकी शिकायतों, समस्याओं एवं कठिनाइयों पर विचार किया जाना आवश्यक है।

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साथियों, ये है हिमालय की आवाज. आप सोच रहे होंगे कि इतने पोर्टल के बीच एक और पोर्टल. इसमें क्या अलग है. यूं तो इसमें भी खबर ही होंगी, लेकिन साथ ही होगी हिमालय की आवाज यानी अपनी माटी, अपने गांव गली और चौक की बात. जल-जंगल और जमीन की बात भी. पहाड़ के विकास के लिए हम दमदार आवाज बनेंगे. आप सभी शुभचिंतकों के सहयोग का आकांक्षी. : किरण शर्मा, संस्‍थापक

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