देहरादून : उत्तराखंड सरकार की नई आबकारी नीति में मंडुआ, झंगोरा, काला भट्ट और तमाम अन्य मोटे अनाज और पर्वतीय फलों को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न प्रावधान किए गए हैं। आबकारी नीति 2024-25 में यह व्यवस्था की गई है कि विदेशी शराब की दुकान के साथ शराब पिलाने की कैंटीन अनिवार्य रूप से खोलनी होगी। जिसके लिए एफएल-05 ई लाइसेंस लेना होगा। कैंटीन के लाइसेंस शुल्क को शराब की संबंधित दुकान के शुल्क का 15 प्रतिशत तय किया गया है। यदि लाइसेंसी कैंटीन में मोटे अनाज विशेषकर पर्वतीय अंचल में पैदा होने वाले अनाज जैसे-मंडुआ, झंगोरा, काला भट्ट आदि से बने भोज्य पदार्थ परोसे जाते हैं तो लाइसेंस शुल्क 10 प्रतिशत ही अदा करना होगा। इसमें पर्वतीय फलों जैसे-कीनू, माल्टा, काफल, सेब, नाशपाती, तिमूर, आड़ू, पहाड़ी खीरा (काखड़ी), पुलम आदि फलों और इनके भोज्य पदार्थों को भी शामिल किया गया है।
आबकारी नीति के मुताबिक शराब पिलाने की कैंटीन का संचालन चाहे तो स्वयं शराब की दुकान का स्वामी कर सकता है या वह इसका संचालन अपने किसी प्रतिनिधि या अन्य अधिकृत व्यक्ति के माध्यम से करवा सकते हैं। हालांकि, कैंटीन में उच्च गुणवत्ता वाला भोजन व नाश्ता ही परोसा जा सकेगा। इस तरह शराब के शौकीनों को शराब पीने के लिए बार से सस्ता विकल्प मिलेगा, साथ ही वह पहाड़ी व पौष्टिक भोज्य पदार्थों का आनंद भी ले सकेंगे। इस व्यवस्था से पर्वतीय अंचल के अनाज और फलों की पैदावार व बिक्री से जुड़े व्यक्तियों को प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष लाभ भी मिलेगा।
कैंटीन का शुल्क शत प्रतिशत माफ भी हो सकेगा
इसके अलावा आबकारी नीति में शराब कैंटीन के लाइसेंस शुल्क में शत प्रतिशत छूट प्राप्त करने की व्यवस्था भी की गई है। इसका लाभ उठाने के लिए देशी/विदेशी शराब की दुकान के संचालक को अपने अहाते में पर्वतीय अनाज और फलों या उनके उत्पादों की बिक्री करनी होगी। यदि ऐसे शराब कारोबारी पर 31 मार्च 2025 तक राजस्व का बकाया नहीं होता है तो शराब पिलाने की कैंटीन के शुल्क को पूरा माफ किया जा सकता है।