देहरादून : 01 जुलाई 2024 से देश में 03 नए आपराधिक कानून लागू हो गए हैं। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की जगह अब भारतीय न्याय संहिता ने ले ली है। इस अवसर पर उत्तराखंड पुलिस मुख्यालय में आयोजित कार्यक्रम में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने दंड की जगह न्याय पर केंद्रित नए कानूनों पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि नए कानून से पुलिस को केस के निस्तारण में मदद मिलेगी और अपराधियों पर शिकंजा कसना आसान होगा। साथ ही मुख्यमंत्री ने बुद्धिजीवियों के साथ संवाद भी किया। इस दौरान उन्होंने नए कानून पर आधारित आईओ एप को लॉन्च कर पुलिस कार्मिकों को टैबलेट भी बांटे। उन्होंने कहा कि नए कानूनों को लागू करने के लिए 20 करोड़ रुपए के बजट का प्रावधान किया गया है। दूसरी तरफ नए कानूनों को लेकर देहरादून समेत प्रदेश के सभी थाना/चौकियों आदि में जनजागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए गए। कार्यक्रम में मुख्य सचिव राधा रतूड़ी, पुलिस महानिदेशक अभिनव कुमार ने भी नए कानूनों पर अपने विचार रखे।
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में 511 धाराएं थीं, लेकिन भारतीय न्याय संहिता में कुल धाराएं 358 रह गई हैं। आपराधिक कानून में बदलाव के साथ ही इसमें शामिल धाराओं का क्रम भी बदल गया है। जैसे अब ठग 420 नहीं, बल्कि 316 कहलाए जाएंगे। हत्या के मामले में 302 को जगह 101 लगाई जाएगी। नए कानून में नाबालिगों के साथ दुष्कर्म के मामले में सजा का प्रावधान कड़ा किया गया है। दूसरी तरफ शादी का वादा कर संबंध बनाने या पत्नी के साथ बलपूर्वक संबंध बनाने को रेप के दायरे से बाहर किया गया है। कुल मिलाकर देश में अंग्रेजों के जमाने से चल रहे 03 आपराधिक कानून अब बदले जा चुके हैं। भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को अमलीजामा पहनाने के लिए 12 दिसंबर 2023 को केंद्र सरकार ने लोकसभा में 03 संशोधित आपराधिक विधियकों को पेश किया था। इन विधेयकों को लोकसभा ने 20 दिसंबर, 2023 को और राज्यसभा ने 21 दिसंबर, 2023 को मंजूरी दी। राज्यसभा में विधेयकों को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की ओर से पेश किए जाने के बाद ध्वनि मत से पारित किया गया था। इसके बाद 25 दिसंबर 2023 को राष्ट्रपति से मंजूरी के बाद विधेयक कानून बन गए।
ये तीन नए कानून भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम हैं, जो क्रमश: भारतीय दंड संहिता (1860), आपराधिक प्रक्रिया संहिता (1898) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (1872) का स्थान ले चुके हैं। आइए जानते हैं आपराधिक कानून में क्या कुछ बदला है।सबसे पहले बात करते हैं भारतीय न्याय संहिता के बारे में। भारतीय दंड संहिता में 511 धाराएं थीं, लेकिन भारतीय न्याय संहिता में धाराएं 358 रह गई हैं। संशोधन के जरिए इसमें 20 नए अपराध शामिल किए हैं, तो 33 अपराधों में सजा अवधि बढ़ाई है। 83 अपराधों में जुर्माने की रकम में भी बढ़ोतरी की गई है। 23 अपराधों में अनिवार्य न्यूनतम सजा का प्रावधान है। 06 अपराधों में सामुदायिक सेवा की सजा का प्रावधान किया गया है।
न्याय व्यवस्था और नागरिकों पर यह होगा नए कानूनों का असर
इसमें ऑडियो-विडियो यानी इलेक्ट्रॉनिक तरीके से जुटाए जाने वाले सबूतों को प्रमुखता दी गई है। वहीं, नए कानून में किसी भी अपराध के लिए जेल में अधिकतम सजा काट चुके कैदियों को प्राइवेट बॉन्ड पर रिहा करने का प्रावधान है। खासकर क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में वर्ष 1860 में बनी आईपीसी की जगह भारतीय न्याय संहिता, वर्ष 1898 में बनी सीआरपीसी की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और वर्ष 1872 के इंडियन एविडेंस एक्ट की जगह भारतीय साक्ष्य अधिनियम ले ली है। नए कानूनों के लागू होने के बाद कई सारे नियम-कायदे भी बदल गए हैं। सीआरपीसी में जहां कुल 484 धाराएं थीं, वहीं भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) में 531 धाराएं हैं। इसमें ऑडियो- विडियो यानी इलेक्ट्रॉनिक तरीके से जुटाए जाने वाले सबूतों को प्रमुखता दी गई है। कोई भी नागरिक अपराध के सिलसिले में कहीं भी जीरो FIR दर्ज करा सकेगा। एफआईआर दर्ज होने के 15 दिनों के भीतर उसे जहां का मामला है, वहां भेजना होगा। पुलिस ऑफिसर या सरकारी अधिकारी के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए 120 दिन में संबंधित अथॉरिटी से इजाजत मिलेगी। अगर नहीं मिली तो उसे ही स्वीकृति मान लिया जाएगा।
एफआईआर के 90 दिनों के भीतर दाखिल करनी होगी चार्जशीट, 60 दिन में आरोप तय
एफआईआर के 90 दिनों के भीतर दाखिल करनी होगी और चार्जशीट दाखिल होने के 60 दिनों के भीतर कोर्ट को आरोप तय करने होंगे। इसके साथ ही मामले की सुनवाई पूरी होने के 30 दिनों के भीतर जजमेंट देना होगा। जजमेंट दिए जाने के बाद 7 दिनों के भीतर उसकी कॉपी मुहैया करानी होगी। पुलिस को हिरासत में लिए गए शख्स के बारे में उसके परिवार को लिखित में बताना होगा। ऑफलाइन, ऑनलाइन भी सूचना देनी होगी। 7 साल या उससे ज्यादा सजा वाले मामले में पीड़ित को सुने बिना वापस नहीं किया जाएगा। थाने में कोई महिला सिपाही भी है तो उसके सामने पीड़िता के बयान दर्ज कर पुलिस को कानूनी कार्रवाई शुरू करनी होगी।
इन मामलों में नहीं कर सकेंगे अपील
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 417 में बताया गया है कि अगर हाईकोर्ट से किसी दोषी को 3 महीने या उससे कम की जेल या 3 हजार रुपये तक का जुर्माना या दोनों की सजा मिलती है, तो इसे ऊपरी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकेगी। आईपीसी में यह व्यवस्था 376 थी, जिसके तहत 6 महीने से कम की सजा को चुनौती नहीं दे सकते थे। इस लिहाज से नए कानून में थोड़ी राहत दी गई है। इसके अलावा यदि सेशन कोर्ट से किसी दोषी को 03 महीने या उससे कम की जेल या 200 रुपये का जुर्माना या दोनों की सजा मिलती है, तो इसे भी चुनौती नहीं दी जा सकेगी। अगर मजिस्ट्रेट कोर्ट से किसी अपराध में 100 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई जाती है तो उसके खिलाफ भी अपील नहीं की जा सकेगी। हालांकि, अगर किसी और सजा के साथ-साथ भी यही सजा मिलती है तो फिर इसे चुनौती दी जा सकती है।
कैदियों पर भी होगा असर, सजा की अवधि में बदलाव संभव
जेल में बढ़ती कैदियों की संख्या के बोझ को कम करने के उद्देश्य से भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में एक बड़ा बदलाव करते हुए कानून की धारा 479 में प्रावधान किया गया है कि अगर कोई अंडर ट्रायल कैदी अपनी एक तिहाई से ज्यादा सजा जेल में काट चुका है तो उसे जमानत पर रिहा किया जा सकता है। हालांकि, ये राहत सिर्फ पहली बार अपराध करने वाले कैदियों को ही मिलेगी। ऐसे कैदियों को जमानत नहीं दी जाएगी, जिन्होंने उम्रकैद की सजा वाले अपराध किए हों। इसके अलावा सजा माफी को लेकर भी बदलाव किए गए हैं। अगर किसी कैदी को सजा-ए-मौत मिली हो तो उसे उम्रकैद में बदला जा सकता है। इसी तरह उम्रकैद की सजा पाए दोषी को 7 साल की जेल में तब्दील किया जा सकता है। साथ ही जिन दोषियों को 7 साल या उससे ज्यादा की जेल की सजा मिली है, उनकी सजा को 3 साल की जेल में बदला जा सकता है, जबकि 7 साल या उससे कम की सजा वाले दोषियों को जुर्माने की सजा सुनाई जा सकती है।
इलेक्ट्रानिक रिकॉर्ड की कागजी साक्ष्य की तरह मान्य भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) में कुल 170 धाराएं हैं। अब तक इंडियन एविडेंस ऐक्ट में कुल 167 धाराएं थीं। नए कानून में 6 धाराओं को निरस्त किया गया है और इसमें 2 नई धारा और 6 उप-धाराओं को जोड़ा गया है। गवाहों की सुरक्षा के लिए भी इसमें प्रावधान किया है। तमाम इलेक्ट्रॉनिक सबूत भी कागजी रिकॉर्ड की तरह ही कोर्ट में मान्य होंगे। इसमें ईमेल, सर्वर लॉग, स्मार्टफोन और वॉइस मेल जैसे रिकॉर्ड को भी शामिल किया गया है।
शादी का झांसा देकर संबंध रेप से किया बाहर
महिलाओं व बच्चों से जुड़े अपराधों में धारा 63-99 तक को रखा गया है। अब दुष्कर्म को धारा 63 से परिभाषित किया गया है। रेप की सजा को धारा 64 में बताया गया है। इसके साथ ही गैंगरेप के लिए धारा 70 है। यौन उत्पीड़न के अपराध को धारा 74 में परिभाषित किया गया है। नाबालिग से रेप के मामले या गैंगरेप के मामले में अधिकतम फांसी की सजा का प्रावधान किया गया है। धारा 77 में स्टॉकिंग (Stalking) को परिभाषित किया गया है, जबकि दहेज हत्या धारा-79 में और दहेज- प्रताड़ना धारा-84 में दर्ज की जाएगी। शादी का झांसा या वादा कर संबंध बनाने वाले अपराध को रेप से अलग अपराध बनाया गया है, यानी उसे रेप की परिभाषा में नहीं रखा गया है।
नाबालिग से दुष्कर्म में उम्रकैद से लेकर मौत तक की सजा-बीएनएस में नाबालिगों से दुष्कर्म में सख्त सजा का प्रावधान किया गया है। 6 साल से कम उम्र की लड़की के साथ दुष्कर्म का दोषी पाए जाने पर कम से कम 20 साल की सजा का प्रावधान किया गया है। इस सजा को आजीवन कारावास तक भी बढ़ाया जा सकता है। आजीवन कारावास की सजा होने पर दोषी की पूरी जिंदगी जेल में ही गुजरेगी। बीएनएस की धारा 65 में ही प्रावधान है कि अगर कोई व्यक्ति 12 साल से कम उम्र की बच्ची के साथ दुष्कर्म का दोषी पाया जाता है तो उसे 20 साल की जेल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है। इसमें भी उम्रकैद की सजा तब तक रहेगी, जब तक दोषी जीवित रहेगा। ऐसे मामलों में दोषी पाए जाने पर मौत की सजा का प्रावधान भी है। इसके अलावा जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है।
मर्डर की धारा बदली, मॉब लिंचिंग में फांसी तक की भी सजा
नए कानून में मॉब लिंचिंग को भी अपराध के दायरे में रखा है। शरीर पर चोट करने वाले अपराधों को धारा 100 से 146 तक परिभाषित किया गया है। मर्डर के लिए सजा धारा 103 में बताई गई है। धारा 111 में संगठित अपराध में सजा का प्रावधान है। धारा 113 में टेरर ऐक्ट बताया गया है, जबकि मॉब लिंचिंग मामले में भी 7 साल कैद या उम्रकैद या फांसी की सजा का प्रावधान है।
पत्नी से जबरन संबंध रेप नहीं
नए कानून के मुताबिक 18 वर्ष से अधिक उम्र की पत्नी के साथ जबरन संबंध बनाए जाते हैं तो वह रेप नहीं माना जाएगा। शादी का वादा कर संबंध बनाने को भी रेप की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है। इसे धारा 69 में अलग से अपराध बनाया गया है। इसमें कहा गया है कि अगर कोई शादी का वादा कर शारीरिक संबंध बनाता है और वह वादा पूरा करने की मंशा नहीं रखता है या फिर नौकरी का वादा कर या प्रमोशन का वादा कर संबंध बनाता है तो दोषी पाए जाने पर अधिकतम 10 साल कैद की सजा हो सकती है। आईपीसी में यह रेप के दायरे में था।
राजद्रोह की धारा नहीं, अब देशद्रोह में परिभाषित
भारतीय न्याय संहिता में राजद्रोह से जुड़ी अलग धारा नहीं है। आईपीसी 124A राजद्रोह का कानून है, जबकि नए कानून में देश की संप्रभुता को चुनौती देने और अखंडता पर हमला करने के खिलाफ जैसे मामलों को धारा 147 से 158 में परिभाषित किया गया है। धारा 147 में कहा गया है कि देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने पर दोषी पाए जाने पर फांसी या उम्रकैद की सजा होगी। धारा 148 में इस तरह की साजिश करने वालों को उम्रकैद और हथियार इकट्ठा करने या युद्ध की तैयारी करने वालों के खिलाफ धारा 149 लगाने का प्रावधान किया गया है। धारा 152 में कहा गया है कि अगर कोई जानबूझकर लिखकर या बोलकर या संकेतों से या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से प्रदर्शन करके ऐसी हरकत करता है, जिससे कि विद्रोह फूट सकता हो, देश की एकता को खतरा हो या अलगाव और भेदभाव को बढ़ावा देता हो तो ऐसे मामले में दोषी पाए जाने पर उम्रकैद या फिर 7 साल की सजा का प्रावधान है।
मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने को माना क्रूरता
मेंटल हेल्थ ( मानसिक स्वास्थ्य) को नुकसान पहुंचाने को क्रूरता माना गया है, इसे धारा 85 में रखा गया है। जिसमें कहा गया है कि अगर किसी महिला को आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए कार्रवाई होती है, तो वह क्रूरता के दायरे में मानी जाएगी। अगर महिला को चोट पहुंचाई जाती है या उसके जीवन को खतरा होता है या फिर हेल्थ या फिज़िकल हेल्थ का खरता पैदा होता है तो दोषी को 3 वर्ष की सजा दिए जाने का प्रावधान किया गया है।
नए कानूनों के आलोक में यह भी जानें
संगठित अपराध: इन्हें धारा 111 में रखा गया है, इसमें कहा गया है कि अगर कोई शख्स ऑर्गेनाइज्ड क्राइम सिंडिकेट चलाता है, कॉन्ट्रैक्ट किलिंग करता है, जबरन वसूली करता है या आर्थिक अपराध करता है तो दोषी को फांसी या उम्रकैद हो सकती है।
चुनावी अपराध की धाराः चुनावी अपराध को धारा 169-177 तक रखा गया है। संपत्ति को नुकसान पहुंचाने, चोरी, लूट, डकैती आदि मामले को धारा 303-334 तक रखा गया है, जबकि मानहानि का जिक्र धारा 356 में किया गया है।
अप्राकृतिक यौनाचार पर अस्पष्टता: नए कानून में धारा 377 यानी अप्राकृतिक यौनाचार को लेकर कोई प्रावधान साफ नहीं किया गया है। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने बालिगों द्वारा बनाए गए यौन संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया था। महिला के साथ अप्राकृतिक यौनाचार जरूर रेप के दायरे में है। लेकिन बालिग पुरुष की मर्जी के खिलाफ और पशुओं के साथ अप्राकृतिक यौनाचार पर बिल में प्रावधान नहीं है।
आतंकवाद की परिभाषा गढ़ी गई
अब तक आतंकवाद की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं थी, अब इसकी परिभाषा है। इस कारण अब कौनसा अपराध आतंकवाद के दायरे में आएगा, ये तय कर लिया गया है।भारतीय न्याय संहिता की धारा 113 के मुताबिक, जो कोई भारत की एकता, अखंडता और सुरक्षा को खतरे में डालने, आम जनता या उसके एक वर्ग को डराने या सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ने के इरादे से भारत या किसी अन्य देश में कोई कृत्य करता है तो उसे आतंकवादी कृत्य माना जाएगा।
सरकारी अफसर के खिलाफ बल प्रयोग की आतंकी कृत्य-आतंकवाद की परिभाषा में ‘आर्थिक सुरक्षा’ शब्द को भी जोड़ा गया है, इसके तहत अब जाली नोट या सिक्कों की तस्करी या चलाना भी आतंकवादी कृत्य माना जाएगा। इसके अलावा किसी सरकारी अफसर के खिलाफ बल का इस्तेमाल करना भी आतंकवादी कृत्य के दायरे में आएगा। नए कानून के मुताबिक बम विस्फोट के अलावा बायोलॉजिकल, रेडियोएक्टिव, न्यूक्लियर या फिर किसी भी खतरनाक तरीके से हमला किया जाता है, जिसमें किसी की मौत या चोट पहुंचती है तो उसे भी आतंकी कृत्य माना जाएगा।
आतंकी गतिविधि के जरिए संपत्ति अर्जित करना भी आतंकवाद
देश के अंदर या विदेश में स्थित भारत सरकार या राज्य सरकार की किसी संपत्ति को नष्ट करना या नुकसान पहुंचाना भी आतंकवाद के दायरे में आएगा। अगर किसी व्यक्ति को पता हो कि कोई संपत्ति आतंकी गतिविधि के जरिए कमाई गई है, उसके बावजूद वो उस पर अपना कब्जा रखता है तो इसे भी आतंकी कृत्य माना जाएगा। भारत सरकार, राज्य सरकार या किसी विदेशी देश की सरकार को प्रभावित करने के मकसद से किसी व्यक्ति का अपहरण करना या उसे हिरासत में रखना भी आतंकवादी कृत्य के दायरे में आएगा।
दया याचिका 30 दिन के भीतर दायर करनी होगी
मौत की सजा पाए दोषी को अपनी सजा कम करवाने या माफ करवाने का आखिरी रास्ता तब दया याचिका होती है, जब सारे कानूनी रास्ते खत्म हो जाते हैं। ऐसे में दोषी के पास राष्ट्रपति के सामने दया याचिका दायर करने का अधिकार होता है। अब तक दया याचिका दायर करने की कोई समय सीमा नहीं थी, लेकिन अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 472 (1) के तहत सभी कानूनी विकल्प खत्म होने के बाद दोषी को 30 दिन के भीतर राष्ट्रपति के सामने दया याचिका दायर करनी होगी। राष्ट्रपति के समक्ष दाखिल दया याचिका पर जो भी फैसला होगा, उसकी जानकारी 48 घंटे के भीतर केंद्र सरकार को राज्य सरकार के गृह विभाग और जेल अधीक्षक को देनी होगी।
सरकारी सेवक किसी कारोबार में नहीं हो सकेगा शामिल, मिलेगी यह सजा
धारा 202: कोई भी सरकारी सेवक किसी तरह के कारोबार में शामिल नहीं हो सकता है। अगर वो ऐसा करते हुए दोषी पाया जाता है तो उसे 1 साल की जेल या जुर्माना या दोनों की सजा या फिर कम्युनिटी सर्विस करने की सजा मिल सकती है।
धारा 209: कोर्ट के समन पर अगर कोई आरोपी या व्यक्ति पेश नहीं होता है तो अदालत उसे तीन साल तक की जेल या जुर्माना या दोनों की सजा या कम्युनिटी सर्विस की सजा सुना सकती है।
धारा 226: अगर कोई व्यक्ति किसी सरकारी सेवक की काम में बाधा डालने के मकसद से आत्महत्या की कोशिश करता है तो एक साल तक की जेल या जुर्माना या दोनों या फिर कम्युनिटी सर्विस की सजा दी जा सकती है।
धारा 303: 5000 रुपये से कम कीमत की संपत्ति की चोरी करने पर अगर किसी को पहली बार दोषी ठहराया जाता है तो संपत्ति लौटाने पर उसे कम्युनिटी सर्विस की सजा दी जा सकती है।
धारा 355: अगर कोई व्यक्ति नशे की हालत में सार्वजनिक स्थान पर हुड़दंग मचाता है तो ऐसा करने पर उसे 24 घंटे की जेल या एक हजार रुपये तक का जुर्माना या दोनों या फिर कम्युनिटी सर्विस की सजा मिल सकती है।
धारा 356: अगर कोई व्यक्ति बोलकर, लिखकर, इशारे से या किसी भी तरीके से दूसरे व्यक्ति की प्रतिष्ठा और सम्मान को ठेस पहुंचाता है तो मानहानि के कुछ मामलों में दोषी को 2 साल तक की जेल या जुर्माना या दोनों या कम्युनिटी सर्विस की सजा दी जा सकती है।