देहरादून : देवभूमि उत्तराखंड चार धाम यात्रा के लिए पूरी तरह से तैयार है। बुधवार को गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट खुलने के साथ ही औपचारिक तौर पर यात्रा का शुभारंभ हो जाएगा। धर्मग्रंथों के अनुसार यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ हिंदुओं के सबसे पवित्र स्थान हैं। मान्यता के अनुसार तीर्थयात्री इस दौरान सबसे पहले यमुनोत्री में यमुना और गंगोत्री में गंगा के दर्शन करते हैं। यहां से पवित्र जल लेकर श्रद्धालु केदारनाथ धाम पहुंचकर बाबा केदार का अभिषेक करते हैं अंत में होते हैं बदरीशपुरी में भगवान नारायण के दर्शन। शास्त्रों में इसे भक्ति से मोक्ष तक की यात्रा कहा गया है।
यमुनोत्री धाम
उत्तराखंड हिमालय में बंदरपूंछ चोटी के पश्चिमी छोर पर समुद्रतल से 3291 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है चारधाम यात्रा का प्रथम पड़ाव यमुनोत्री धाम। जानकी चट्टी से छह किमी की खड़ी चढ़ाई चढऩे के बाद यमुनोत्री पहुंचा जाता है। यहां पर स्थित यमुना मंदिर का निर्माण जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं सदी में करवाया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार यमुना सूर्य की पुत्री हैं, जबकि यम पुत्र। इसलिए यमुना में स्नान करने पर यम की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यमुना का उद्गम यमुनोत्री से लगभग एक किमी दूर 4421 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यमुनोत्री ग्लेशियर है। यमुनोत्री मंदिर के समीप गर्म पानी के कई कुंड हैं। इनमें सूर्यकुंड सबसे प्रसिद्ध है। मान्यता है कि अपनी पुत्री को आशीर्वाद देने के लिए सूर्यदेव ने यहां गर्म जलधारा का रूप धारण किया था। श्रद्धालु इसी कुंड में चावल और आलू कपड़े में बांधकर कुछ मिनट तक छोड़ देते हैं और पके हुए इन पदार्थों को प्रसाद स्वरूप घर ले जाते हैं। सूर्यकुंड के पास ही एक शिला है, जिसे दिव्य शिला के नाम से जाना जाता है। यात्री यमुनाजी की पूजा पहले इस दिव्य शिला का पूजन करते हैं। इसी के पास जमुना बाई कुंड है, जिसका निर्माण करीब सौ साल पहले हुआ था। इस कुंड का पानी हल्का गर्म है, जिसमें पूजा सेपहले स्नान किया जाता है। यमुनोत्री के पुजारी और पंडा पूजा करने के लिए खरसाली गांव से आते हैं, जो जानकी बाई चट्टी के पास ही है।
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गंगोत्री धाम
गंगोत्री धाम समुद्रतल से 3140 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। गंगोत्री को ही गंगा का उद्गम स्थल माना गया है। हालांकि, गंगा गंगोत्री से ऊपर गोमुख ग्लेशियर से निकलती है। गंगोत्री में गंगा को ‘भागीरथीÓ नाम से जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा भगीरथ के नाम पर इस नदी का नाम भागीरथी
पड़ा। कथा है कि राजा भगीरथ ही तपस्या करके गंगा को पृथ्वी पर लाए थे। सतयुग में सूर्यवंशी राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ कराने का निश्चय किया। इस दौरान उनका घोड़ा जहां-जहां गया, उनके 60 हजार पुत्रों ने उन स्थानों को अपने अधीन कर लिया। इससे देवराज इंद्र चिंतित हो गए और उन्होंने घोड़े को पकड़कर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। राजा सगर के पुत्र मुनिवर का अनादर करते हुए घोड़े को छुड़ा ले गए। इससे कुपित कपिल मुनि ने सगर के पुत्रों को भस्म हो जाने का श्राप दे दिया। लेकिन, सगर के क्षमा याचना करने पर कपिल मुनि द्रवित हो गए और बोले कि अगर स्वर्ग में प्रवाहित होने वाली गंगा पृथ्वी पर आ जाए और उसके पावन जल का स्पर्श इस राख से हो जाए तो उनके पुत्र जीवित हो उठेंगे। लेकिन, सगर गंगा को पृथ्वी पर लाने में असफल रहे। बाद में उनके पुत्र भगीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर लाने में सफलता प्राप्त की। ऐसा माना जाता है कि 18वीं सदी में गोरखा कैप्टन अमर सिंह थापा ने शंकराचार्य के सम्मान में गंगोत्री मंदिर का निर्माण किया था। 20 फीट ऊंचा यह मंदिर भागीरथी नदी के बायें तट पर सफेद पत्थरों से निर्मित है। राजा माधोसिंह ने वर्ष 1935 में इसका जीर्णोद्धार कराया, जिससे मंदिर की बनावट में राजस्थानी शैली की झलक मिलती है। मंदिर के समीप भागीरथी
शिला है, जिस पर बैठकर भगीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए कठोर तप किया था।
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गंगोत्री मार्ग : ऋषिकेश से शुरू होने वाली यात्रा में उत्तरकाशी में विश्वनाथ व शक्ति मंदिर, भाष्कर प्रयाग, गंगनानी में गर्म पानी का कुंड, धराली में पौराणिक शिव मंदिर समूह, मुखवा में गंगा के शीतकालीन पड़ाव और भैरवघाटी में भैरवनाथ मंदिर के दर्शन किए जा सकते हैं।
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यमुनोत्री मार्ग : ऋषिकेश से शुरू होने वाले मार्ग में गंगनानी में प्रयाग से पूर्व होने वाले गंगा व यमुना की धाराओं के संगम, ऋषि जमदाग्नि मंदिर, हर्षिल में हरि शिला, हनुमानचट्टी में हनुमान मंदिर और यमुनोत्री के शीतकालीन पड़ाव खरसाली में यमुना मंदिर के दर्शनों का लाभ ले सकते हैं।
ऐसे पहुंचें
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यात्री हवाई जहाज से सीधे देहरादून के पास जौलीग्रांट एयरपोर्ट अथवा रेल से सीधे ऋषिकेश पहुंच सकते हैं। ऋषिकेश से संयुक्त रोटेशन यात्रा व्यवस्था समिति की देखरेख में यात्रा का संचालन होता है।
नजदीकी हवाई अड्डा : जौलीग्रांट
नजदीकी रेलवे स्टेशन : ऋषिकेश
सड़क मार्ग : हरिद्वार-ऋषिकेश