देहरादून : नगर निगम देहरादून में सफाई कर्मियों के वेतन के नाम पर करोड़ों के फर्जीवाड़े में जिम्मेदारी तय नहीं हो पा रही है। 99 फर्जी कर्मचारियों के नाम सालों वेतन लिया जाता रहा और धरातल पर कार्य कर रहे कर्मचारियों को भी मनमाना वेतन दिया जाता रहा। इसमें कई पार्षद समेत नगर निगम के सफाई इंस्पेक्टर और सुपरवाइजर के साथ ही निगम के स्वास्थ्य अनुभाग के अधिकारियों के भी शामिल होने के आरोप लग रहे हैं। लेकिन, सात माह से इस मामले में जांच पर कार्रवाई नहीं की जा सकी। इसमें राजनीतिक दबाव को कार्रवाई न होने का कारण माना जा रहा है।
स्वच्छता समितियों में हुए करोड़ों के वेतन फर्जीवाड़े में कार्रवाई का इंतजार और लंबा हो गया है। करीब सात माह से जांच के बाद जांच और फाइल इधर से उधर घूमने का सिलसिला तो अभी चल ही रहा था। अब शासन स्तर से मामले में एक और जांच बैठा दी गई है। इस पूरे प्रकरण में गेंद अब शहरी विकास निदेशालय के पाले में आ गई है। निदेशालय ने एक कमेटी का गठन कर अब तक हुई जांचों का परीक्षण शुरू कर दिया है। हालांकि, मामले में लगातार राजनीतिक दबाव के कारण ठोस कदम उठाने से अधिकारी भी बचते नजर आ रहे हैं।
नगर निगम देहरादून में स्वच्छता समिति के तहत वर्षों 99 फर्जी कर्मचारी दर्शाकर वेतन प्राप्त किया जाता रहा। बीते जनवरी में मामला उजागर हुआ तो उसके बाद जांच बैठाई गई। हालांकि, महीनों चली जांच और फिर रिपोर्ट इस टेबल से उस टेबल सरकती रही और जांच रिपोर्ट पर न तो कार्रवाई हुई और न ही गड़बड़ी के लिए किसी की जिम्मेदारी तय की गई। हालांकि, राजनीतिक दबाव के कारण नगर निगम के अधिकारियों के गड़बड़ी में शामिल जन प्रतिनिधियों के नाम जाहिर करने से बचने के आरोप लगे। लेकिन, अब शहरी विकास निदेशालय की कमेटी भी इस प्रकरण की जांच का परीक्षण कर नए सिरे से जिम्मेदारी तय करने की कसरत कर रही है। प्रकरण में समितियों में फर्जी कर्मचारियों के नाम किया गया वेतन भुगतान की धनराशि शासन के मद की थी। ऐसे में शासन के स्तर पर शहरी विकास निदेशालय को भी मामले के परीक्षण के निर्देश दिए गए। निदेशालय की कमेटी ने नगर निगम से प्रकरण से जुड़े तमाम दस्तावेज और अब तक की गई जांच की रिपोर्ट मांगी है।
नगर निगम प्रशासक और जिलाधिकारी सोनिका के निर्देश पर बीते जनवरी में मुख्य विकास अधिकारी को वेतन फर्जीवाड़े की जांच सौंपी गई थी। जिसकी जांच पूरी कर तीन माह के भीतर सीडीओ ने रिपोर्ट सौंप दी थी। इस रिपोर्ट में 99 फर्जी कर्मचारियों के नाम पर वेतन जारी होने की पुष्टि हुई। नगर निगम में वर्ष 2019 में 100 वार्डों में स्वच्छता समितियों का गठन क्षेत्रीय पार्षद की निगरानी में करने का निर्णय लिया गया। जिसका अनुमोदन तत्कालीन नगर आयुक्त और महापौर से प्राप्त किया गया। समिति में अध्यक्ष, सचिव एवं कोषाध्यक्ष तीन अन्य सदस्य बनाए गए। स्वच्छता समिति की ओर से निकटतम बैंक में खाता खोला गया। जिसका संचालन अध्यक्ष एवं कोषाध्यक्ष के हाथ में था। नगर निगम से कर्मचारियों का वेतन लेने के बाद अध्यक्ष एवं कोषाध्यक्ष को वेतन आहरित कर कर्मचारी को प्रदान करने का अधिकार था। जांच रिपोर्ट में उल्लेख है कि मोहल्ला स्वच्छता समिति में बोर्ड का कार्यकाल समाप्त होने से पूर्व माह नवंबर 2023 की सूची के तहत स्वच्छकों की संख्या 985 है, जबकि, दिसंबर 2023 में नगर निगम बोर्ड की अवधि पूर्ण होने के बाद सूची में स्वच्छकों की संख्या 921 है। दोनों सूचियों में कुल 64 का अंतर है। इसके बाद वेतन भुगतान भी केवल 822 स्वच्छता कार्मिकों को होना दर्शाया गया। मुख्य नगर स्वास्थ्य अधिकारी ने भी स्वच्छता समिति की सूची के भौतिक सत्यापन के बाद सूची में दर्शाये गए कर्मचारियों में से कई के धरातल पर उपस्थित न होने की पुष्टि की थी। इस दौरान पाया गया कि बोर्ड भंग होने से पूर्व 99 फर्जी कर्मचारियों को वेतन का भुगतान किया जाता रहा। भौतिक सत्यापन के दौरान कर्मचारियों के आधार कार्ड और अन्य दस्तावेज जांचे गए तो कुछ नए कर्मचारी भी कार्य करते पाए गए, जबकि, कई कर्मचारी अनुपस्थित मिले। ऐसे में वर्ष 2019 से वर्ष 2023 के बीच वेतन फर्जीवाड़े की पुष्टि हुई।