देहरादून : देहरादून के प्रसिद्ध ऑर्थोपीडिक सर्जन और इंडियन ऑर्थोपीडिक एसोसिएशन के उत्तरांचल स्टेट चैप्टर के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. बी. के. एस. संजय ने “ऑथर्स फ्रॉम द वैली” के जुलाई संस्करण की शोभा बढ़ाई, जिसका आयोजन वैली ऑफ वर्ड्स, इंटरनेशनल लिटरेचर एंड आर्ट्स फेस्टिवल द्वारा वाॅव कैफे-लाइब्रेरी-गैलरी-स्टूडियो में किया गया।
डॉ. संजय के नाम कई उपलब्धियां हैं। डाॅ. संजय की उत्कृष्ट सामाजिक उपलब्धियों के लिए वर्ष 2002, 2003, 2004 और 2009 में लिम्का बुक रिकॉर्ड एवं 2005 में गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में उनका नाम उल्लेखित किया जा चुका है। डॉ. संजय को उनकी प्रथम काव्य संग्रह उपहार संदेश का के लिए 2022 में “हिंदी की गूंज” संस्था द्वारा “काव्य भूषण सम्मान” से सम्मानित किया जा चुका है। डाॅ. संजय की रचनाओं में समाज के लिए प्रेम, स्नेह, सेवा और करुणा की सार्वभौमिक भावनाओं को भलि-भांति दर्शाया गया है। चर्चा में रही पुस्तक “उपहार संदेश का” भारतीय ज्ञानपीठ एवं वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित डॉ. संजय की पचहत्तर कविताओं का नवीनतम संकलन है जिसका लोकापर्ण उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा किया गया। डाॅ. संजय अपनी प्रथम काव्य संग्रह की प्रति भारत के उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू एवं भारत की माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु एवं भारत के पूर्व राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद एवं विश्वविख्यात लेखक रस्किन बाॅण्ड को भी भेंट कर चुके हैं।
कवि ने अपने संग्रह “उपहार संदेश का” से कुछ कविताएं सुनाईं, जो उन्हें लगा कि आज की दुनिया में प्रासंगिक हैं और जो सामान्य रूप से मानव जीवन की बुनियादी वास्तविकताओं को प्रदर्शित करती हैं। उन्होंने उल्लेख किया कि कैसे उनका नवीनतम कविता संग्रह की कविताऐं जैसे ’दो शब्द’, ‘कविता क्या है’, ‘फैलाव’, ‘सपने हमारे और आपके’ ‘भूख’, ‘नाता’ आदि वास्तविक जीवन पर आधारित कविताऐं हैं। उन्होंने कहा, “मैंने फिक्सन के बजाय कविता को चुना क्योंकि मेरी कविताएं वास्तविकता पर आधारित हैं जबकि फिक्सन काल्पनिक होती हैं”।
हरिद्वार के लंढौरा स्थित चमनलाल स्नातकोत्तर महाविद्यालय के प्राचार्य एवं हिंदी के प्रोफेसर डॉ. सुशील उपाध्याय ने हिंदी साहित्य की दुनिया के एक अन्य रत्न डॉ. सुशील उपाध्याय से बातचीत की। भाषा, मीडिया और साहित्य पर एक दर्जन से अधिक पुस्तकों के प्रकाशित लेखक, डॉ उपाध्याय ने हिंदी साहित्य और पत्रकारिता से संबंधित पचास शोध पत्र भी लिखे हैं। डॉ. उपाध्याय ने कविता की दुनिया और इसकी बारीकियों में डॉ. संजय की यात्रा को याद किया। मॉडरेटर ने कवि के बहुआयामी व्यक्तित्व और डॉ संजय के काम में एक अभिन्न भूमिका निभाने वाले विभिन्न प्रभावों पर प्रकाश डालते हुए सत्र को खूबसूरती से क्यूरेट किया। इन दिनों उन्हें क्या व्यस्त रखता है, इस बारे में बात करते हुए डॉ संजय ने कहा, वर्तमान में मैं अपनी नई कविताओं के संग्रह पर काम कर रहा हूं। मैंने और मेरे बेटे ने विभिन्न स्वास्थ्य और सामाजिक मुद्दों पर पायनियर के लिए लगभग सौ अतिथि-कॉलम लिखे हैं। मैंने उन्हें बहुत जल्द एक पुस्तक के रूप में संकलित करने की योजना बनाई है।
महोत्सव के निदेशक डॉ. संजीव चोपड़ा ने कहा, एक डॉक्टर के लिए, जो चिकित्सा जगत के एक उद्यमी और पेशेवर नेता भी हैं, उनकी कविता की सरगर्मी असामान्य है लेकिन डाॅ. संजय की कविताओं को पढ़ना वास्तव में आंखे खोलने वाली हैं। एक कविता जो कहती है कि श्दादी वास्तव में कभी बूढ़ी नहीं हो सकती हैं, बच्चे के जन्म के परीक्षणों और क्लेशों के साथ-साथ कोख से कब्र तक जीवन की यात्रा तक, उनकी कविताएं चिंतनशील तनाव में जीवन की यात्रा में वास्तविक अंतर्दृष्टि को दर्शाती हैं। डॉ. चोपड़ा ने आगे कहा, यह अनूठा संग्रह जी -20 के विषय के साथ अच्छी तरह से मेल खाता है और भगवद गीता के तीसरे अध्याय का आठवां श्लोक भी बहुत प्रासंगिक है- “शास्त्र द्वारा निर्धारित अपना काम करें, क्योंकि जीवन में काम में सक्रिय रुप से जुड़ना काम ना करने से बेहतर है, और वास्तव में, शरीर भी केवल काम के माध्यम से स्वस्थ रह सकता है”।